________________
( 8 ) निसासमाणे वा कासमाण वा छीयमाणे वा जंभायमाणेवा उड्डुवाएवा वायणिसग्गे वा करेमाणेवा पुवामेव आसयंवा पोसयं वापाणिणा परिपेहित्ताततो संजयामेव ओसा सेज्जाजाव वायणिसग्गेवा करेज्जा ॥
भावार्थ-उच्छ्वास निश्वास लेते,खांसी लेते,छींक लेते,उवासी लेते,डकार लेते, हुए साधुने हस्त करके मुंह ढांकना-अब विचारो कि मुंह बांधा हुआ होवे तो ढांकना क्या 2 तथा जठेने लिखा है, कि “नाक ढांकना किसीभी जगह कहा नहीं है तो मुख बांधनाभी कहां कहा है,सो बताओ। - तथा शास्त्रमें मुंहपत्ती और रजोहरण त्रस जीवकी यत्नावास्ते कहे हैं, और तुम तो मुहपत्ति वायुकायकी रक्षा वास्ते कहतेहो तो क्या रजोहरण वायुकायकी हिंसा वास्ते रखते हो ? क्योंकि रजो हरणतो प्रायः सारादिन वारंवार फिरानाही पड़ता हैं,प्रश्न के अंत में जेठा लिखता है कि "पुस्तककी आशातना टालने वास्ते मुंहपत्ती कहते हैं,वे झूठ कहते है'जेठेका यह पूर्वोक्त लिखना असत्य है, क्योंकि खुले मुंह बोलनेसे पुस्तकोंपर थूक पड़नेसे आशातना होती है, यह प्रत्यक्ष सिद्ध है * तथा जेठेने लिखा है कि "पु
___ *पार्वती ढूंढकनी भी अपनी बनाई ज्ञानदीपिकामें लिखती है कि "पाठक तोकीको विदित हो कि इस परमोपकारी ग्रंथको मुख के पागे वस्त्र रखकर अर्थात् मुख ढांपकर पटना चाहिये क्योंकि खुले मुखसे बोलने में सूक्ष्म जीवोंको हिंसा होजाती है और पारण पर (पुस्तकपर) थूक पड़जाती है।