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( ४ ) और जो सूयगडांग सूत्रकी गाथा लिखके जेठेने अपनी परंपराय बांधी है सो असत्य है, क्योंकि इन गाथायोंमें सिद्धांतकारने ऐसा नहीं लिखा है कि पंचम कालमें मुहबंधे ढूंढक मेरी परंपरायमें होवेंगे, इसवास्ते इन गाथायोंके लिखनेसे ढूंढक पंथ सच्चा नहीं सिद्ध होता है, परंतु ढूंढक पंथ वेश्यापुत्र तुल्य है यह तो इस ग्रंथमें प्रथम ही सावित करचुके हैं ?
॥ इति प्रथम प्रश्नोत्तर खंडनम् ॥
(२) आर्यक्षेत्र की मर्यादा विषय। दूसरे प्रश्नोत्तर में जेठा रिख लिखता है कि " तारा तंबोल में जैनी जैनमतके मंदिर मानते हैं” उसपर श्रीबृहत्कल्प सूत्र का पाठ लिखके आर्यक्षेत्रकी मर्यादा वताके पूर्वोक्त कथनका खंडन किया है; परन्तु जेठे का यह पूर्वोक्त लिखना महा मिथ्या है, क्योंकि जैनशास्त्रों में तारातंवोल में जैनमत, वा जैनमन्दिर लिखे नहीं हैं, और हम इस तरह मानते भी नहीं हैं यह तो जेठे के शिर में विनाही प्रयोजन खुजली उत्पन्न हुई है, इसवास्ते यह प्रश्नो तर ही झूठाहै और श्रीबृहत्कल्पसूत्रका पाठ तथा अर्थलिखाहै सो भी झूठा है, क्योंकि प्रथम तो जो पाठ लिखा है सो खोटों से भरा हुआ है, और उसका जो अर्थ लिखा है सो महा भ्रष्ट स्वकपोल - कल्पित झूठा लिखा है,उसने लिखा है कि " दक्षिण में कोसंबी नगरी तक सो तो दक्षिण दिशा में समुद्र नजदीक है आगे समुद्र जगती तक है तो समुद्र का क्या कारण रहा,” अब देखिये जेठेकी मूर्खता ! कि कोशांबी नगरी प्रयागके पास थी, जिस जगे अब