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( ४ ) . (२) श्रीसमवायांग सूत्रमें श्रीमल्लिनाथ प्रभुके (५७००) मन पर्यवज्ञानी कहे हैं, और श्रीज्ञातासूत्रमें (८००) कहे हैं,यह क्या ? - (३) श्रीसमवयांग सूत्रमें श्रीमल्लिनाथजीके (५९००) अवधि ज्ञानी कहे हैं और श्रीज्ञातासूत्र में (२०००) कहे हैं सो क्या ? -
(४) श्रीज्ञातासूत्र में श्रीमल्लिनाथजीकी दीक्षाके पीछे ६ मित्रों की दीक्षा लिखी है, और श्री ठाणांगसूत्रमें श्रीमल्लिनाथजी के साथ ही लिखी है सो क्या ?
(५) श्रीउत्तराध्ययन सूत्रके ३३ में अध्ययनमें वेदनीय कर्मकी जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्तकी कही है,और श्री पन्नवणा सूत्रके ३३ में पद में बारां मुहूर्तकी कही हैं, सो क्या ? . इस तरह अनेक फरक हैं, जिनमें से अनुमान (९०) श्रीमद्यशोविजयजी कृत वीरस्तुतिरूप हुंडोंके स्तवन के बालावबोध में पंडित श्रीपदमविजयजीने दिखलाए हैं, परंतु यह फरक तो अल्प बुद्धिवाले जीवोंके वास्ते हैं,क्योंकि कोई पाठांतर, कोई अपेक्षा, कोई उत्सर्ग, कोई अपवाद, कोई नयवाद, कोई विधिवाद, कोई चरितानुवाद, और कोई वाचनाभेद हैं,सो गीतार्थ ही जानते हैं, जिनमेंसे बहुतसे फरक तो नियुक्ति,टीका प्रमुखसे मिटजाते हैं क्योंकि नियुक्तिके कर्ता चतुर्दश पूर्वधर समुद्र सरिखी बुद्धिके धनी थे, ढूंडकों जैसे मूढमति नहीं थे ? . . - ऐसे पूर्वोक्त प्रकार केअनाचारी,भ्रष्ट, दुराचारी,कुलिंगीयोंको, जैनमतके, चतुर्विध संधके तथा देव गुरु शास्त्र के निंदकों को, तथा दैत्य सरिखे रूप धारनेवाले स्वच्छंदमतियोंको,साधु माननेको और इनके धर्मकी उद्धयर पूजाकहनी तथा लिखनी महामिथ्या दृष्टियों का काम है ?