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(४०) (१४) श्रीनंदीसूत्रमें १४०००सूत्र कहे हैं,ढूंढिये नहीं मानते हैं, ऊपर लिखे मूजिब अधिकार सूत्रोंमें कहे हैं, इनकी भी ढूंढकोंको खबर नहीं मालूम देती है, तो फेर इनको शास्त्रोंके जाणकार कैसे मानीए ?
__ अब कितनेक अज्ञानी ढूंढक ऐसे कहते हैं, कि हमतो सूत्र मानते हैं नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका नहीं मनते हैं।
इसका उत्तर (१)सूत्र में कहा है किः-“अत्थं भासेइ अरहा सुत्तं गुत्थंति गणहरा निउणा" । ___ अर्थ-सूत्र तो गणधरोंके रचे हैं और अर्थ अरिहंतके कहे हैं तो सूत्र मानना, और अर्थ बताने वाली नियुक्ति,भाष्य, चूर्णि,टीका नहीं माननी यह प्रत्यक्ष जिनाज्ञा विरुद्ध नहीं हैं ?:जरूर है ___ (२) श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है कि व्याकरण पढे बिना सूत्र वांचे तिसको मृषा बोलने वाला जाणना सो पाठ यह है, नामक्खाय निबाय उवसग्ग तडिय समास संधि पय हेउ जोगिय उणाइ जिरिया विहाण धाउसर विभित्तिवन्नजत्ततिकालंदसविहं पि सच्चजह भणियंतह कम्मुणा होइ दुवा लस विहाय होइ भासा वयणंपियहोइ सोलसविहं एवं अरिहंत मणुन्नायं समिक्खियं संजएणं कालंमिय वत्तव्वं॥