________________
( ४१ ), अर्थ-नाम, आख्यात, निपात, उपसर्ग, तद्धित, समास, संधि पद, हेतु, यौगिक, उणादि, क्रिया, निधान, धातु, स्वर, विभक्ति, वर्ण युक्त, तीन काल,दश प्रकार का सत्य, वारों प्रकार की भाषा, सोलां प्रकारका वचन जाणना, इस प्रकार अरिहंतने आज्ञा करी है, ऐसे सम्यक् प्रकारसे जानके, बुद्धि द्वारा विचार के साधुने अवसर अनुसार बोलना ॥
इस प्रकार सूत्रमें कहा है, तोभी ढूंढीये व्याकरण पढे.बिना सूत्र बांचते हैं,तो अब विचारणाचाहिये,कि पूर्वोक्त वस्तुओंका ज्ञान विना व्याकरण के पढे कदापि नहीं हो सक्ता है, और व्याकरणका पढना दंडीये अच्छा नहीं समझते हैं,तो पूर्वोक्त पाठका अनादर करनेसे जिनाज्ञाके उत्थापक इनको समझना चाहिये कि नहीं ? जरूर समझना चाहिये।
(३) श्रीसमवायांग सूत्र तथा नंदिसूत्रमें कहा है कि:आया रेणं परित्ता वायणा संक्खिज्जा अण ओगदारा संक्खिज्जा वेढा संक्खिज्जा सिलोगा संक्खिज्जाओ निज्जत्तिओ संक्खिज्जाओ पडिवत्तिओ संक्खिज्जाओ संघयगोओ इत्यादि।
यद्यपि सूत्रोंमें कहा है तोभी ढूंढक नियुक्ति प्रमुखको नहीं मानते हैं, इस वास्ते येह सूत्रों के विराधक हैं ॥ - (४) श्रीठाणांग सूत्रके तीसरे ठाणेके चौथे उद्देशे में सूत्र