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८,२८ ) (१२८) धोलेरा में वोड़ी बनाई है सो ?
ऊपर के प्रश्न ढूंढकोंके आचार वगैरह के संबंध में लिखे हैं इन पर विचार करने से प्रगटपणे मालूम होगा कि इनका आचार व्यवहार जैन शास्त्रोंसें विरुद्ध है। .
- सुज्ञजनो ! संवेगी जैन मुनि देश विदेशमें विचरते हैं, तिन के उपकरण और क्रिया वगैरह प्रायः एक सदृश ही होती है और ढूंढकोंके मारवाड़, मेवाड़, पंजाब, मालवा, गुजरात, तथा काठियावाड़ वगैरह देशों में रहने वाले रिखों (ढूंढक साधओं) के उपकरण, पोसह, प्रतिक्रमण वगैरहका विधि और क्रिया वगैरह प्रायःपृथक् पृथक-ही होते हैं,इससे सिद्ध होता है कि इनकी क्रिया वगैरह स्वकपोल कल्पित है, परन्तु शास्त्रानुसार नहीं है।
ढूंढक लोक मिथ्यात्वके उदयसे बत्तीस ही सूत्र मान के शेष सूत्र पंचांगी तथा धर्म धुरंधर पूर्वधारी पूर्वाचार्यों के बनाये ग्रन्थ प्रकरण वगैरह मानते नहीं हैं तो हम उन ( ढूंढकों) को पूछते हैं कि नीचे लिखे अधिकारों को तुम मानते हो, और तुमारे माने बत्तीस सूत्रों के मूल पाठमें तो किसी भी ठिकाने नहीं है तो तुम किसके आधारसे यह अधिकार मानते हो ? बत्तीस सूत्रों के बाहिरके जो जो बोल दिये
मानते हैं वे बोल यह हैं (१) जंबू स्वामी की आठ स्त्री॥. . (२) पांचसौ सत्ताईस की दीक्षा। । (३). महावीर स्वामीके सत्ताईस भव । (४) चंदनवालाने उड़दके बाकुले विहराए ।