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(१५) (४) चौथे प्रश्न में लिखा है कि “कान पड़वाते हो" उत्तरयह लेख मिथ्या है क्योंकि हम कान पड़वाते नहीं हैं कान तो कान फटे योगी पड़वाते हैं।
(५) खमासमणे वहोरते हो (६) घोडा रथ बैहली डोली में बैठते हो (७) गृहस्थ के घर में बैठके वहोरते हो (८) घरों में जाके कल्पसूत्र बांचते हो (९) नित्यप्रति उस ही घर वहेरते हो (१०) अंघोल करते हो (११) ज्योतिष निमित्त प्रयुंजते हो (१२) कलवाणी करके देते हो (१३)मंत्र,यंत्र,झाडो,दवाई करते हो इन नव प्रश्नोंके उत्तर में लिखने का कि जैन मुनियों को यह सर्व प्रश्न कलंक रूप हैं क्योंकि जैन संवेगी साधु ऐसे करते नहीं हैं,परंतु अंतके प्रश्नमें लिखे मूजिव मंत्र,यंत्र,झाड़ा,दवाई वगैरह ढूंढक साधु करते हैं,यथा (१) भावनगर में भीमजी रिख तथा चूनीलाल (२) बरवाला में रामजी रिख (३) बोटाद में अमरशी रिख (४) ध्रांगधरा में शाम जी रिख वगैरह मंत्र यंत्र करते हैं यंत्र लिख के धुलाके पिलाते हैं कच्चे पाणीकी गड़वीयां मंत्रकर देते हैं अपने पासों दवाई की पुडीयां देते हैं बच्चों के शिर पर रजोहरण फिराते हैं वगैरह सब काम करते हैं इस वास्ते यह कलंक तो ढूंढकों के ही मस्तकों पर है (१४) में प्रश्नमें जो लिखा है सो सत्य है क्योंकि व्यवहारभाष्य श्राद्धविधिकौमुदी आदि ग्रंथों में गुरुको समेला करके लाना लिखाहै
और ढूंढक लोकभीलाने वक्त और पहुंचाने वक्त वर्जितर बजवाते हैं भावनगर में गोबर रिख के पधारने में और रामजी ऋष के वि. हार में वर्जितर बजवाये थे और इस तरां अन्यत्र भी होता है * ॥ * रावलपिंडी शहरमें पार्वतीढूंढनीके चौमासे में दर्शनार्थ आए बाइरले भाइयों को