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(१ ) सेवक था. तिसके मुंह से हमने देवीचंद मोतीचंद के कथनानुसार सुना है कि जेठमल्ल को झूठ बोलने का विचार नहीं था इतनाही नहीं किंतु तिसके ब्रह्मचर्य का भी ठिकाना नहीं था इसवास्ते जेठ मल्ल ने जो लंपकमत की उत्पत्ति लिखी है बिलकुल झूठी और स्वकपोल कल्पित है, और हमने जो उत्पत्ति लिखा है सो पूर्वोक्त ग्रंथों के अनुसार लिखीहै इसमें जो किसी ढूंढक या लंपकको असत् मालुम होवे तो उसने हमारे पास से पूर्वोक्त ग्रंथ देख लेने
११में पष्टमें जेठमल्ल ने (५२) प्रश्न... - लिखे हैं तिनके उत्तर.. . पहिले ओरदूसरे प्रश्न में लिखा है कि चेला मोल लेते हो(१) छोटे लड़कोंको विना आचार व्यवहार सिखाए दीक्षा देते हो (२), जवाब-हमारे जैनशास्त्रों में यह दोनों काम करनेकी मनाई लिखी है और हम करते भी नहीं हैं,पूज्य- (डेरेदारयति) करते हैं तो चे अपने आप में साधुपनेका अभिमान भी नहीं रखते हैं परंतु ढूंढक के गुरु लुकागच्छ में तो प्रायः हर एक पाट मोल के चेले से ही चलो आया है और ढूंढक भी यह दोनों काम करते हैं तिनके दृष्टांतजेठमल्ल के टोले के रामचंद ने तीन लड़के इस रीति से लिये (१) मनोहरदास के टोले के चतुर्भुज ने भर्तानामा लड़का लिया है (२) धनीराम ने गोरधन नामा लडका लिया है (३) संगलसेन ने दो लड़के लिये हैं (४) अमरसिह के चेले ने अमीचंद नामा लड़का लिया है (५) रूपांढूंढकणी ने पांच वर्ष की दुर्गी नामा लड़की ला है (६) राजा ढुंढणीने तीन वर्ष का जीया नामा * इस ढूंढक मत को पटावती का विस्तार पूर्वक वर्णन ग्रंथकर्ता ने श्रीजैनतत्त्वार्थ में करा सवारते यहां संप से मतलब जितनाही लिया।