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तथा कानजी हुआ, कानजी के पास गुजरात का रहने वाला धर्मदास छींबा दीक्षा लेने को आया परंतु वो कानजी का आचार भ्रष्ट जान कर स्वयमेव साधु बन गया, और मुंह के पोटी बांध ली, इन के (ढूंढकों के) रहने का मकान ढूंढ अर्थात् फूटा हुआथा इस वास्ते लोकों ने ढूंढक नाम दीया, और लुंपकमति कुंवर जी के चेले धर्मसी, श्रीपाल और अमीपाल ने भी गुरु को छोड़ के स्वयमेव. दीक्षा लीनी तिन में धर्मसी ने आठ कोटी पंच्चक्खाण का पंथ चलाया सो गुजरात देश में प्रसिद्ध है। धर्मदास छीपी का चेला धनाजी हुआ,तिस काचेला भुदरजी हुआ,
और तिस के चेले रघुनाथ, जैमलजी और गुमानजी हुए इनका परिवार मारवाड देश में विचरता है,तथा गुजरात मालवे में भी है ॥ रघुनाथ के चेले भीखम ने तेरापंथी मुंह बंधों का पंथ चलाया।
लवजी ढूंढकमत का आदि गुरु (१) तिसका चेला सोमजी (२) तिसका हरिदास (३) तिस का वृंदावन (8) तिसका भुगानीदास (५) तिसका मलूकचंद(६)तिसका महासिंह(७)तिसका कुशालराय (८)तिसका छजमल्ल (९) तिसका रामलाल (१०) तिसका चेला अमरसिंह (११) मी पीढी में हुआ, अमरसिंह के चेले पंजाब देश में मुंहबांधे फिरते हैं।
कानजी के चेले मालवा औरगुजरात देश में हैं।
समकितसार जिस के जवाब में यह पुस्तक लिखा जाता है तिसका कर्ता जेठ मल्ल धर्मदास छींके के चेलों में से था और वो ढूंढकके आचरण से भी भ्रष्ट था इसबास्ततिसके चेले देवीचंद और मोतीचंददोनों तिसको छोड़के दिल्ली में जोगराजके चेले हजारीमल्लके पास आ रहे थे दिल्ली के श्रावक केसरमल्ल जोकि हजारीमल्ल का