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१०-सम्यक्त्वपराक्रम (२) पूर्वक प्रकट कर दो। इस प्रकार सरलता का व्यवहार करने से ही आत्मा का कल्याण हो सकता है ।
कहा जा सकता है कि सरलता किस प्रकार धारण करनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि किसी भी बात मे छल-कपट से काम नहीं लेना चाहिए । वरन जो बात जिस रूप मे हो, उसे उसी रूप में स्पष्ट कह देना चाहिए । कल्पना कीजिए, आपके पास दस रुपये है। कोई दूसरा आदमी आपसे दो रुपया मागने आया। आपको अच्छी तरह मालूम है कि आपके पास दस रुपया हैं, फिर भी अगर आप मागने वाले से कहते है- 'अजी, मेरे पास रुपये होते तो मै क्या आपको नाही करता !' इस प्रकार दुर्व्यवहार करना कपट है, सरलता नही है । कपट करना अपनी आत्मा का अपमान करने के समान है । अगर आप मागने वाले को रुपया नही देना चाहते तो स्पष्ट कह देना चाहिए कि मेरे पास रुपया है, मगर मैं नही देना चाहता । ऐसा कहने मे कपट भी नही और आत्मा का अपमान भी नही है ।
कहा जा सकता है कि इस प्रकार के स्पष्ट व्यवहार से तो लोक-व्यवहार का लोप होता है । इसके उत्तर मे ज्ञानीजनो का कथन है कि कपटपूर्ण व्यवहार से धर्म और व्यवहार दोनो का लोप होता है । मांगने वाले से आपने स्पष्ट कह दिया होता कि मैं रुपया नही देना चाहता तो आपका व्यवहार उलटा अच्छा होता । मगर कपट करने से व्यवहार अच्छा नही रह सकता । आपका उत्तर सुन कर मांगने वाला मनुष्य तुम्हारे विषय मे यह सोचता कि उन्होने रुपया नही दिया, मगर बात सच्ची कह दी, झूठ नही बोला। इस प्रकार तुम्हारे सत्य व्यवहार से तुम्हारा विश्वास भी जमेगा।