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पास जमीन की मालकी और इस विद्या का प्रचार महाराजा और साम्राज्य की पायदारी
और राजा प्रजावों मे सुख शान्ति बनी रहती है और क्षत्रियों की जनीन पर मालकी
और इस विद्याका प्रचार न होनेसे क्या क्या उपद्र व दुख अत्याचारोसे राज्यों में परिवर्तन होता रहता है और इसी तरह बल बुद्धियों में भी परिवर्तन होता रहता है स्वार्थ सुख की अधिकता से जगत मे दुख अत्याचारों के। अधिकता होजाती है और यह प्रकृति नियम है की जगत करता ने ज्ञान और अज्ञान दोनु रचे जब उपरी राज्य और उनके समीप वर्ति कर्मचारीयों याने उच्च क्षण में ज्ञान होता है तोमध्यम और कनिष्ट श्लोणीयों मे अज्ञान रहता हैं हास हेतु जहां जहां जन समूह है यहां का रक्षा न्याय के लिये वही क्षत्रिय सजा है ये राजविद्या वाक्य स्वयम् सिध है इस को लक्षणे रख कर जहां जन समाजाक क्षत्रियों को
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