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के प्रभाव से क्षत्रिय समस्त पृथीवी मण्डल में स्वस्ति सुख शान्ति स्थिति पूर्वक राज्य करते थे इस विद्याका ७-८ हजार वर्षों से लोप रहना श्री मद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय से साबित है इस विद्याकी प्राप्ति इस प्रकार हुइ कि ये स्वामी किमी समय गीता पाठ कर रहाथा तो इस को मालूम हुवा कि राजविद्याभी कोइ विद्या है इसपर खोजमे लगा तो थोडीसी तो वगेर चित्र के जेसलमेर के पुस्तकालय से भाठी बुलीदानसिंहजी की मारफत मिली फेर खोजने पर हरद्वार के पहाड़ों ले पाशुपति मत्तके कपालीनाथजी से संपूर्ण सचिन मिलगइ परंतु ये माकत भाषा मे लिखी हुइथा और जेसलमेर की मागधी भाषा मेथी सो ठीकतार से न समज मे आने से इस स्वामीने इस विद्याको राजा प्रजावों के अत्यंत हितकारी समझ श्री कपालीनाथजी से समज लावी इसलीये ये स्वाभिी इस के साएको जानताहै कि समस्त क्षत्रियों के
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