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॥ भूमिका ॥ ये सजविद्या की पुस्तक पृष्टी मेस्वस्ति सुख शान्ति रिकति पर पा सरलाती है इस का वस्नातक उपदेशदनेवाला श्रीमान् स्वामी लालपुरी सरल स्वभाव प्रशसनीय परि
मी क्षात्रहितशी पुर पहै । इस स्वामीनै घोर परिश्रम एवं कष्ट उठाकर तपास्वयों के सत्संग द्वारा लुप्त हुई राजविघा का दर्शन व! अक्सर प्राप्त कराया है यह कार्य इसके १४वर्ष के शक्त परिश्रम का पल है । आज वल पाश्चात्य सभ्यताभिमानी प्राय यह समजले है कि जांकुछ उन्नति इस ममय पश्चात्य लेगोने की है वह हात श्री है और रहन सहन खान पान ती रिवाज सबों में उनकाही अनुकरण करते है अपने घर से सर्वथा अपरिक्षित हैं वास्तव में ऋषि मुनियों के निर्मित कीये हुवे अमृत्य शास्त्र भाजदिनभी मीलते है जानकी युरोप के विद्वान बडी बडी प्रशंसा (तारीफ) करते है और जिन
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