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राज्य करता है और बहुत सन्तति के साथ वृधि को प्राप्त होता हुवा दीर्घायुसवाला होता है और
आपके लिये यही मेरी हार्दिक इच्छा है, और मेरी इश्वर से भी यही प्रार्थना है कि आप इस पुस्तक की शिक्षा अनुसार स्वस्ति सुख शान्ति स्थिति पूर्वक सौ वर्ष राज्य करै क्योंकि मेरा मुख्य सिधान्त ये है किविधना अपने हाथ से तोले सर्व कर्म । सौ सुकृत इक पालने एको साम धर्म ।
याने सामधर्म से बढ के इस संसार में कुछ नहीं तन मन धन जो मालिक के काम में आवे तो फेर इससे उत्तम और क्या हो सकता है और मेरा आत्मिक भाव भी मेरे सच्चे दृढ सिधान्त साम धर्म में रहै इसी के अनुसार इस राज विद्या की पुस्तक को राजा प्रजाओं के लिये अत्यन्त हितकारी समझ समय समय पर इस स्वामी को मदत देता हुवा यथा शक्ति द्रव्य व्यय का भार
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