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इस विद्या का अनुभव और बुधजनों का विशेष संसर्ग शेष है सो भी आपके पुण्य प्रताप से ये विद्यातो प्रगट हो आई है और बुद्धजनों के मिलने से राजा सर्व जाण होता है और निष्कण्टक राज्य करता है जैसे माहाराजा विक्रम भोज कर्ण आदि थे, और आज दिन भी बड़े से बडा अंग्रेज छोटे से छोटा आदमी से मिलने में कोह संका नहीं खाता है इसी से उनका बल बढता जा रहा है । परन्तु फिर भी प्रकृति माया वश उत्थान पतन होता रहता है, ये ही विद्या यूरोप वालों को लगभग १०३ वर्ष पेशतर इसी देश से अधांश मिली थी उसी के नमुने से ये प्रशंसनीय राज्य कर रहे हैं । परन्तु आपके पूर्व अपार पुण्य प्रताप से अब वही विद्या पूर्ण रूप से मिली है।
३-इस विद्या का ७-८ सात आठ हजार वर्षों से लोप होना श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय
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