Book Title: Rajvidya
Author(s): Balbramhachari Yogiraj
Publisher: Balbramhachari Yogiraj

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस विद्या का अनुभव और बुधजनों का विशेष संसर्ग शेष है सो भी आपके पुण्य प्रताप से ये विद्यातो प्रगट हो आई है और बुद्धजनों के मिलने से राजा सर्व जाण होता है और निष्कण्टक राज्य करता है जैसे माहाराजा विक्रम भोज कर्ण आदि थे, और आज दिन भी बड़े से बडा अंग्रेज छोटे से छोटा आदमी से मिलने में कोह संका नहीं खाता है इसी से उनका बल बढता जा रहा है । परन्तु फिर भी प्रकृति माया वश उत्थान पतन होता रहता है, ये ही विद्या यूरोप वालों को लगभग १०३ वर्ष पेशतर इसी देश से अधांश मिली थी उसी के नमुने से ये प्रशंसनीय राज्य कर रहे हैं । परन्तु आपके पूर्व अपार पुण्य प्रताप से अब वही विद्या पूर्ण रूप से मिली है। ३-इस विद्या का ७-८ सात आठ हजार वर्षों से लोप होना श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय For Private And Personal Use Only

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