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साधना के दो आदर्श
भारतीय दर्शन - शास्त्र में एक बहुत ही उलझा हुआ प्रश्न है कि आत्म-साधना के लिए कौन-सा मार्ग श्रेष्ठ है-साधु जीवन या गृहस्थ जीवन ? अनेक ऋषियों, मनीषियों एवं विचारकों ने अपना-अपना चितन इस विषय पर दिया है। जिस मार्ग से जिन्होंने साधना की, अपने स्वरूप का बोध प्राप्त किया, उन्होंने उसी मार्ग को श्रेष्ठ बतला दिया । किसी ने मुनि जीवन को श्रेष्ठ बतलाया, तो किसी ने गृहस्थ जीवन को । वैष्णव सम्प्रदाय के एक महान आचार्य ने गृहस्थ जीवन की प्रशंसा में मुक्त कण्ठ से कहा है
"गृहस्थाश्रम समो धर्मो, न भूतो न भविष्यति ।"
इस विचार को बहुत से व्यक्तियों ने माना भी है, और इस पर चले भी हैं। आज गृहस्थ जीवन की साधना का बड़े घटाटोप से मण्डन किया जाता है ।
दूसरी ओर, भारतीय चिंतन की एक प्रमुख धारा है कि गृहस्थ जीवन का प्राणी बहुत पामर प्राणी है । वह रात-दिन वासनात्रों की गन्दगी में पड़ा रहता है, संघर्षो और स्वार्थों के अँधेरे में इधर-उधर भटकता रहता है । पत्नी और बच्चों की उलझन में ही जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षण गँवाता रहता है । सन्त कबीर ने इसी सन्दर्भ में कहा है-
"यह संसार काँटों को झाड़ी, उलझ -पुलझ मरि जाना है ।"
यह गृहस्थ जीवन केवल काँटों से भरा हुआ ही नहीं है, अपितु काँटों की एक सघन झाड़ी ही है, जिसमें एक बार कोई प्राणी उलझ गया, तो बस फिर ताण नहीं है । बलगम (खार) में फँसी मक्खी की तरह तड़प-तड़प कर ही प्राण गवां बैठता है । इसके दूसरे पार्श्व पर साधु जीवन का भी बड़ा ही रंगीन चित्र उपस्थित है—
"मन लागो मेरो यार फकीरी में,
जो सुख पायो राम भजन में, सो सुख नहीं अमीरी में ।"
इस वर्ग के विचारकों ने साधु-जीवन को बहुत अधिक महत्त्व दिया है । कुछ विचारकों ने तो इसे जीते-जी मृत्यु तक की संज्ञा दे दी है। हाँ, वास्तव में जीते-जी मरना भी एक बहुत बड़ी कला है, वह तो जीवन-मुक्ति की कला है । वहाँ त्याग, वैराग्य की भट्टी में निरंतर जलते रहना पड़ता है ।
मध्य-मार्ग :
भगवान् महावीर के सामने भी यह प्रश्न उठा था। संसार के हर महापुरुष के समक्ष यह प्रश्न आया है। हर साधारण व्यक्ति के समक्ष भी यह प्रश्न आता है। चूंकि संसार का हर प्राणी राहगिर है, पथिक है, अतः उसके समक्ष पहला प्रश्न राह का प्राता है । वह कौन-सी राह पर चले, जिससे जीवन में आनन्द का उल्लास का वातावरण मिले । भगवान् महावीर ने इसका बहुत ही सुन्दर समाधान दिया है। उन्होंने दोनों 'प्रति' से
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साधना के दो प्रदर्श
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