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भूख, भूख ही नहीं, मनुज कोपीड़ा है सबसे भीषणतम । कभी-कभी उत्तम जन को भी, कर देती है प्रति अधमाधम ॥
जीवन-तरु का मूल अन्न है, एक-एक कण संरक्षित हो। अन्न-विनाशक मनुज-जाति का, शत्रु भयानक उद्घोषित हो॥
---उपाध्याय अमरमुनि
४०६ Jain Education Intemational
पन्ना समिक्खए धम्म
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