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एक साथ आन्दोलित कर रही थी। स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास पढ़ने वाले जानते हैं कि उन दिनों किस प्रकार हिन्दू और मुसलमान भाई-भाई की तरह मातृभूमि के लिए अपने जीवन का बलिदान कर रहे थे। उत्तर और दक्षिण मिलकर एक अखंड भारत हो रहे थे। सब लोग एक साथ यातनाएँ झेलते थे और अपने सुख-दुःख के साथ किस प्रकार एकाकार हो कर चल रहे थे। राष्ट्र के लिए अपमान, संकट, यन्त्रणा और फाँसी के फन्दे तक को भी हँसते-हँसते चूम लेते थे। मैं पूछता हूँ क्या आज वैसी यातना और यन्त्रणा के प्रसंग आपके सामने हैं ? नहीं ! बिलकुल नहीं ! जो हैं वे नगण्य हैं और बहुत ही साधारण है ! फिर क्या बात हुई कि जो व्यक्ति जेलों के सीखचों में भी हँसते रहते थे, वे आज अपने घरों में भी असन्तुष्ट, दीन-हीन, निराश और आक्रोश से भरे हुए हैं। असहिष्णुता की आग से जल रहे हैं ! क्या कारण है कि जो राष्ट्र एकजुट होकर एक शक्ति-सम्मन्न विदेशी शासन से अहिंसक लड़ाई लड़ सकता है, वह जीवन के साधारण प्रश्नों पर इस प्रकार टुकड़े-टुकड़े होता जा रहा है ? रोताबिलखता जा रहा है ? मेरी समझ में एकमात्र मुख्य कारण यही है कि आज भारतीय जनता में राष्ट्रिय स्वाभिमान एवं राष्ट्रिय-चेतना का अभाव हो गया है। देश के नवनिर्माण के लिए समूचे राष्ट्र में वह पहले-जैसा संकल्प यदि पुनः जागृत हो उठे, वह जन-चेतना यदि राष्ट्र के मूच्छित हृदयों को पुनः प्रबुद्ध कर सके, तो फिर मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी नहीं, बल्कि आदर्शों का नाम महात्मा गाँधी होगा। फिर झोंपड़ी में भी मुस्कराते चेहरे मिलेंगे, प्रभावों की पीड़ा में भी श्रम की स्फूर्ति चमकती मिलेगी। आज जो व्यक्ति अपने सामाजिक एवं राष्ट्रिय उत्तरदायित्वों को स्वयं स्वीकार न करके फुटबाल की तरह दूसरों की ओर फेंक रहा है, वह फूलमाला की तरह हर्षोल्लास के साथ उनको अपने गले में डालेगा और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिपद एवं प्रतिपल सचेष्ट होगा। आशापूर्ण भविष्य :
मैं जीवन में निराशवादी नहीं हैं। भारत के सुनहले अतीत की भाँति सुनहले भविष्य की तस्वीर भी मैं अपनी कल्पना की आँखों से देख रहा हूँ। देश में आज जो अनुशासन-हीनता और विघटन की स्थिति पैदा हो गई है, आदर्शों के अवमूल्यन से मानव गड़बड़ा गया है, वह स्थिति एकरोज अवश्य बदलेगी। व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के लिए संक्रांतिकाल में प्रायः अन्धकार के कुछ क्षण आते हैं, अभाव के प्रसंग आते हैं, परन्तु ये क्षण एवं प्रसंग स्थायी नहीं होते। भारत में वह समय आएगा ही, जब शुद्ध राष्ट्रिय-चेतना का शंखनाद गंजेगा, व्यक्तिव्यक्ति के भीतर राष्ट्र का गौरव जागेगा, राष्ट्रिय स्वाभिमान प्रदीप्त होगा। और यह राष्ट्र जिस प्रकार अपने अतीत में गौरव-गरिमा से मंडित रहा है, उसी प्रकार अपने वर्तमान और भविष्य को भी गौरवोज्ज्वल बनाएगा। किन्तु यह तभी सम्भव है, जब कि आपके अन्तर में अखण्ड राष्ट्रिय-चेतना जागृत होगी, कर्तव्य की हुँकार उठेगी, परस्पर सहयोग एवं सद्भाव की ज्योति प्रकाशमान होगी।
राष्ट्रिय जागरण
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