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भूखा क्या नहीं कर गुजरता? वह झूठ बोलता है, चोरी करता है, हत्या कर बैठता है, दुनिया भर के जाल, फरेब और मक्कारियाँ भी वह कर सकता है।
इसीलिए मैं कहता हूँ कि भूख की समस्या का धर्म के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है और इस समस्या के समाधान पर ही धर्म का उत्थान निर्भर है। अहिंसा के देश में:
आप जानते हैं कि भारत में आज क्या हो रहा है ? जैन तो अहिंसा के उपासक रहे ही हैं, वैष्णव भी अहिंसा के बहुत बड़े पुजारी रहे हैं, किन्तु उन्हीं के देश में, हजारों-लाखों रुपयों की लागत से बड़े-बड़े तालाबों में मछलियों के उत्पादन का और उन्हें पकड़ने का काम शुरू हो रहा है। यही नहीं, धार्मिक स्थानों के तालाबों में भी मछलियाँ उत्पन्न करने की कोशिश की जा रही है ! यह सब देखकर मैं सोचता हूँ कि आज भारत कहाँ जा रहा है ! आज यहाँ हिंसा की जड़ जम रही है और हिंसा का खुला मार्ग खोला जा रहा है।
अगर देश की अन्न समस्या हल नहीं की गई और अन्न के विशाल संग्रह काले बाजार में बेचे जाते रहे, तो उसका एकमात्र परिणाम यही होगा कि मांसाहार बढ़ जाएगा। अहिंसक शाकाहारी घरों में भी मांस-मछली का प्रवेश हो जाएगा, हिंसा का ताण्डव होने लगेगा और भगवान् महावीर और बुद्ध की यह भूमि रक्त से रंजित हो जाएगी। इस महापाप के प्रत्यक्ष नहीं, तो परोक्ष भागीदार वे लोग भी बनेंगे, जिन्होंने अन्न का अनुचित संग्रह किया है, अपव्यय किया है और चोर बाजारी की है ! दुर्भाग्य से देश में यदि एकबार माँसाहार की जड़ जम गई, तो उसका उखाड़ना बड़ा कठिन हो जाएगा। यद्यपि कालान्तर में सुभिक्ष होने पर भरपूर अन्न पैदा हो जाएगा, अन्न की कुछ भी कमी न रहेगी, फिर भी माँसाहार कम नहीं होगा ! माँस का चस्का बुरा होता है और लग जाने पर उसका छूटना सहज नहीं है। अतएव दीर्घदर्शिता का तकाजा यही है कि पानी आने से पहले पाल बाँध ली जाए, बुराई पैदा होने से पहले ही उसे रोक दिया जाए।
देश को विकट समस्या : भूख
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