________________
बूंद-बूंद मिल झरने बनते, झरने मिल सरिता सुखकार । सरिता मिल-मिल बने महोदधि, ये है मिलने का विस्तार ॥
व्यक्ति-व्यक्ति मिल कुल बन जाते, कुल मिल-मिल कर बने समाज । अणु से महान, महत्तर होना, यह है मात्र प्रगति का राज ।
--उपाध्याय अमरमुनि
३४८.
Jain Education The national
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org