________________
तारे तोड़ लाने तक का साहस होना चाहिए, बड़ी-से-बड़ी कठिनाई को भी पार कर जाने की हिम्मत होनी चाहिए । यदि वे साहस की प्रतिमूर्ति हो कर भी परीक्षा आदि में अनुत्तीर्ण होने मात्र से हताश हो कर आत्मघात के लिए तैयार हो जाएँ, यह उन्हें शोभा नहीं देता। छात्रों में इस प्रकार की दुर्बलता का होना राष्ट्र के भविष्य के लिए भी महान चिन्ता की बात है। छात्रों की मानसिक दुर्बलता का कारण :
आज छात्रों के मन में जो इतनी दुर्बलता आ गई है, उसका कारण उनके अभिभावकों की भूल है। वे महल तो गगन-चुम्बी तैयार करना चाहते हैं, परन्तु उसमें सीढ़ी एक भी नहीं लगाना चाहते। और, बिना सीढ़ी के महल में रहना पसन्द ही कौन करेगा? माता-पिता प्रारम्भिक संस्कार सीढ़ियाँ बनने नहीं देते और उन्हें पैसा कमाने के गोरखधंधे में डाल देने की ही धुन में लगे रहते हैं।
ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी एक कहानी में लिखा है
एक सेठ ने एक बड़ा इंजीनियर रख कर एक बहुत बड़ा दो मंजिल का सुन्दर महल बनवाया। लोग सेठ के महल को देखने आये। पहली मंजिल बड़ी शानदार बनी थी। उसे देखभाल कर जब वे दूसरी मंजिल पर जाने लगे तो सीढ़ियाँ ही नहीं मिलीं। इधर देखा, उधर देखा, परन्तु सीढ़ियों का कहीं कोई पता न चला। आखिरकार वे सेठ को कहने लगे- "सेठजी यह क्या ताबत खडा कर दिया है? ऊपर की मंजिल में जाने के लिए तो सीढ़ियाँ तक भी नहीं बनवाई है। आपकी वह ऊपर की मंजिल किस काम आएगी? लोगों की आलोचना सुनकर सेठजी अपनी भूल पर मन-ही-मन पश्चात्ताप करने लगे।"
कहने का अभिप्राय यह है कि उक्त सेठ की तरह इंजीनियररूपी शिक्षक लगाकर माता-पिता छात्ररूपी महल तो खड़ा कर लेते हैं, वह दिखाई भी बड़ा शानदार देता है, परन्तु उसमें सुसंस्कारों की सीढ़ियाँ नहीं लग पातीं। इस कारण वह महल निरुपयोगी हो जाता है और सूना होकर पड़ा-पड़ा खराब हो जाता है। संस्कारों के अभाव में वह जिन्दगी वर्वाद हो जाती है। ऐसे छात्र छोटी-छोटी बात पर भी माता-पिता को धमकी दे कर घर तक से निकल भागते हैं।
लड़कों की आत्महत्या और उनके फरार होने का उत्तरदायित्व माताओं पर भी कम नहीं है। वे पहले तो लड़के को लाड़-प्यार करके सिर चढ़ा लेती हैं, उसे बिगाड़ देती हैं, उसे उच्छृखल बना देती है, और जब वह बड़ा होता है, तो उसकी इच्छाओं पर कठिन प्रतिबन्ध लगाना शुरू कर देती हैं। जब लड़का अपने चिर-परिचित वातावरण और व्यवहार के विरुद्ध आचरण देखता है, तो उसे सहन नहीं कर पाता और फिर आवेश में न करने योग्य काम भी कर बैठता है।
छात्रों की दुर्बलता : उनका महान् कलंक :
कारण चाहे कुछ भी हो, कहीं से भी हो, हमारे नव-युवकों की यह दुर्बलता उनके लिए कलंक की बात है। नवयुवक को तो प्रत्येक परिस्थिति का दृढ़ता और साहस के साथ सामना करना चाहिए। उसे प्रतिकूलताओं से जूझना चाहिए, असफलतानों से लड़ना चाहिए, विरोध के साथ संघर्ष करना चाहिए, कठिनाइयों को कुचल डालने के लिए तैयार रहना चाहिए और बाधाओं को उखाड़ फेंकने की हिम्मत अपने अंतर्मन में रखनी चाहिए। उसे कायरता नहीं सोहती। दुर्बलता उसके पास फटकनी नहीं चाहिए। प्रात्मधात का विचार साहसी पुरुषों का नहीं, अपितु वह अतिशय नामर्दो, कायरों और बुजदिलों का मार्ग है । जीवन से उदासीनता : आत्मा का अपमान :
किसी भी प्रकार की असफलता के कारण जीवन से उदासीन हो जाना अपने शौर्य का, अपने पौरुष का, अपने पराक्रम का और अपनी आत्मा का अपमान करना है।
पन्ना समिक्खए धम्म For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education Interational