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कर्म, कर्म रहता है, तब तक, जब तक उसमें काम-बुद्धि है। होता वही अकर्म सुनिश्चित, अगर कामना-मुक्त शुद्धि है।
विष भी अमृत हो जाता है, कुशल वैद्य के बुद्धि योग से। सब-कुछ संभव है जगती में, मनोभाव के सुप्रयोग से ॥
-उपाध्याय अमरमनि
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