Book Title: Panna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 385
________________ सुधार न किया होता और उन्हें ज्यों-का-त्यों अक्षुण्ण बनाए रक्खा होता, तो हमारे सामने ये रिवाज होते ही नहीं, जो आज प्रचलित हैं। फिर तो भगवान् ऋषभदेव के जमाने में जैसी विवाह-प्रथा प्रचलित थी, वैसी-की-वैसी आज भी प्रचलित होती। किन्तु बात यह नहीं है। काल के अप्रतिहत प्रवाह में बहते हुए समाज ने, समय-समय पर सैकड़ों परिवर्तन किए। यह सब परिवर्तन करने वाले पूर्वज लोग ही तो थे। आपके पूर्वज स्थितिपालक नहीं थे। वे देश और काल को समझ कर अपने रीति-रिवाजों में परिवर्तन भी करना जानते थे और समय-समय पर परिवर्तन करते भी रहते थे। इसी फलस्वरूप यह समाज आज तक टिका हुआ है, सामयिक परिवर्तन के बिना समाज टिक नहीं सकता। पूर्वजों के प्रति आस्था का सही रूप : " एक बात और विचारणीय है कि जो पोशाक पूर्वपुरुष पहनते थे, क्या वही पोशाक आज आप पहनते हैं ? पूर्वज जो व्यापार-धन्धा करते थे, क्या वही आप आज करते हैं? पुरखा लोग जहाँ रहते थे, क्या वहीं आज आप रहते है? आपका आहार-विहार क्या अपने पूर्वजों के आहार-विहार के समान ही है? यदि इन सब बातों में परिवर्तन कर लेने पर भी आप अपने पूर्वजों की अवगणना नहीं कर रहे है और उनके प्रति आपकी आस्था ज्यों-की-त्यों विद्यमान है, तो क्या कारण है कि सामाजिक रीति-रिवाजों में समयोचित परिवर्तन कर लेने पर वह आस्था विद्यमान नहीं रह सकती? मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि यदि यह आस्था अपने पूर्वजों के प्रति सच्ची आस्था है, तो हमें उनके चरण-चिन्हों पर चल कर उनका अनुकरण और अनुसरण करना चाहिए । जैसे उन्होंने अपने समय में परिस्थितियों के अनुकूल सुधार करके समाज को जीवित रखा और अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया, उसी प्रकार आज हमें भी परिस्थितियों के अनुकूल सुधार करके, उसमें आए हुए विकारों को दूर करके, समाज को नव-जीवन देना चाहिए और अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देना चाहिए। अंध-प्रशंसा नहीं: सही अनुकरण : वह पुत्र किस काम का है, जो अपने पूर्वजों की प्रशंसा के पुल तो बांधता है, किन्तु जीवन में उनके अच्छे कार्यों का अनुकरण नहीं करता ! सपूत तो वह है, जो पूर्वजों की भाँति, आगे आकर, समाज की स्थिति में कल्याणकारी गतिशील सुधार लाता है और इस बात की परवाह नहीं करता कि दूसरे कौन क्या कहते हैं ? सुधार करते हैं या नहीं? यदि पूर्वजों ने कायरता नहीं दिखलाई, तो आप अाज कायरता क्यों दिखाते हैं ? धारणाओं की पंगुता: आज सब जगह यही प्रश्न व्याप्त है। प्राय: सभी यही सोचते रहते हैं और सारे भारत को इसी मनोवृत्ति ने घेर रखा है कि-दूसरे वस्तु तैयार कर दें और हम उसका उपभोग कर लें। दूसरे भोजन तैयार कर दें और हम खा लिया करें। दूसरे कपड़े तैयार कर दें और हम पहन लें। दूसरे सड़क बना दें और हम चल लिया करें। स्वयं कोई पुरुषार्थ नहीं कर सकते, प्रयत्न नहीं कर सकते और जीवन के संघर्षों से टक्कर भी नहीं ले सकते। अपना सहयोग दूसरों के साथ न जोड़ कर, सब यही सोचते हैं कि दूसरे पहले कर लें, तो फिर मैं उसका उपयोग कर लूं और उससे लाभ उठा लू। आज समाज-सुधार की बातें चल रही हैं। जिन बातों का सुधार करना है, वे किसी जमाने में ठीक रही होंगी, किन्तु अब परिस्थिति बदल गई है और वे बातें भी सड़-गल गई हैं तथा उनके कारण समाज वर्बाद हो रहा है अत: परिवर्तन उपेक्षित है। किन्तु खेद है, जब कोई सुधार करने का प्रश्न प्राता है, तो कहा यह जाता है कि पहले समाज ठीक कर ले, तो फिर मैं ठीक कर लं, समाज रास्ता बना दे, तो मैं चलने को तैयार हूँ। परन्तु कोई भी आगे बढ़कर पुरुषार्थ नहीं करना चाहता, साहस नहीं दिखाना चाहता। ३६६ पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454