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दिया। दो हजार वर्ष जितना लम्बा एवं दीर्घ समय व्यतीत हो जाने पर भी आज तक के साधक, ब्रह्मचर्य व्रत के अमर साधक स्थलभद्र को भल नहीं सके हैं। स्थलभद्र के जीवन के सम्बन्ध में प्राचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है कि वे योगियों में श्रेष्ठ योगी, ध्यानियों में श्रेष्ठ ध्यानी और तपस्वियों में श्रेष्ठ तपस्वी थे। पूर्व स्नेहानुरक्त अप्रतिम सुन्दरी कोशा वेश्या के यहाँ चार महीने रह कर भी, वे वैसे ही निर्विकार सर्वथा शुद्ध बाहर आए, जैसे सवन बादलों में से चन्द्रमा। स्थूलभद्र की इस यशो-गाथा को सुनने के बाद सुनने वाले के दिमाग में यह प्रश्न उठ सकता है कि आखिर वह क्या साधना थी? कैसे की गई थी? उन्होंने इस बात के लिए दृढ़ शब्दों में कहा था कि---"मेरी साधना में जो एक विघ्न था, वह भी स्वतःही दूर हो गया। जब मैं एक बार बन्धन-मुक्त हो गया हूँ, तब फिर दुबारा बन्धन में क्यों फैसू ?" निश्चय ही उनका जीवन सरस, शान्त, शीतल एवं प्रकाशमय था। उनके जीवन के इस संयम के कारण ही, उनकी धारणा-शक्ति अपूर्व बन सकी थी। किसी भी शास्त्र में उनकी बुद्धि रुकती नहीं थी। यह बौद्धिक बल उन्हें ब्रह्मचर्य से प्राप्त हुआ था।
स्वामी विवेकानन्द का नाम कौन नहीं जानता ? विवेकानन्द के जीवन में जो एकाग्रता, एकनिष्ठता और तन्मयता थी, वह किसी दूसरे पुरुष में देखने को नहीं मिलती। उनकी प्रतिभा एवं मेधा-शक्ति के चमत्कार के विषय में कहा जाता है कि वे जब किसी ग्रन्थ का अध्ययन करने बैठते थे, तब एक आसन पर एक साथ ही अध्याय के अध्याय पढ़ लेते थे और किसी के पूछने पर वे उन्हें ज्यों का त्यों सुना भी देते थे। उनकी स्मरणशक्ति अद्भुत था। कोई भी विषय एसा नहीं था, जिसे व प्रासानी से न समझ सकते हों। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे कि ब्रह्मचर्य के बल से सारी बातें साधी जा सकती हैं।
आधुनिक युग के अध्यात्म योगी साधक श्रीमद् राजचन्द्र से सभी परिचित हैं। उनमें शताधिक अवधान करने की क्षमता एवं योग्यता थी। जिस भाषा का उन्होंने अध्ययन नहीं किया था, उस भाषा के कठिन से कठिन शब्दों को भी वे आसानी से हृदयंगम कर लेते थे। यह उनके ब्रह्मचर्य योग की साधना का ही शुभ परिणाम है। उन्होंने ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में अपने एक ग्रन्थ में कहा है---
"निरखी ने नव यौवना, लेश न विषय निदान ।
गणे काष्ठ नो पूतली, ते भगवंत समान । ब्रह्मचर्य की इससे अधिक परिभाषा एवं व्याख्या नहीं की जा सकती, जो ब्रह्मचर्य-योगी श्रीमद् राजचन्द्र ने अपने इस एक दोहे में कर दी है।
ब्रह्मचर्य का प्रभाव :
ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में जैन-धर्म ने और दूसरे धर्मों ने भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही है। वह यह कि ब्रह्मचर्य आत्मा की प्रान्तरिक शक्ति होते हुए भी बाह्य पदार्थों में
न कर देने की अद्भुत क्षमता रखता है। वह प्रकृति के भयंकर से भयंकर पदार्थों की भयंकरता को नष्ट कर उनको आनन्दमय एवं मंगलमय बना देता है।
ब्रह्मचर्य की साधना, जीवन की एक कला है। अपने प्राचार-विचार और व्यवहार को बदलने की साधना है। कला वस्तु को सुन्दर बनाती है, उसके सौन्दर्य में अभिवृद्धि करती है। और आचार भी यही काम करता है। वह जीवन को सुन्दर, सुन्दरतर और सुन्दरतम बनाता है। जीवन में शारीरिक सौन्दर्य से, आचरण का सौन्दर्य हजारों-हजार गुणा अच्छा है। श्रेष्ठ प्राचरण मूर्ति, चित्र एवं अन्य कलाओं की अपेक्षा अधिक आनन्द प्रदाता है। वह केवल अपने जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य व्यक्तियों के लिए भी
1. A beautiful behaviorus is better than a beautiful form it gives a higher pleasure than statues and Pictures.--Emerson.
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पन्ना समिक्खए धम्म
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