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अनेकान्त है सम्यक् - दर्शन,
मिथ्या दर्शन
है
एकान्त ।
अन्धाग्रह के कारागृह से, मुक्त चेतना होती शान्त ॥
धर्म एक है निश्चय नय से, वह न कभी परिवर्तित होता । क्रिया-काण्ड, व्यवहार सत्य है, यथाकाल परिचालित होता ॥
-- उपाध्याय श्रमरमुनि
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पना सम्मिखए धम्मं
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