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मूर्छा मूलक संग्रह ही है, एक मात्र शोषण का मूल । शोषण से ही पैदा होते, जनता में विग्रह के शूल ॥
मूर्छा अन्सर को बेहोशी, परम ज्योति पर तम की धूल। निज हित, पर हित दोनों से हो, करती जन-जन को प्रतिकूल ॥
--उपाध्याय
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पन्ना सश्निखए धम्म
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