Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जानी खूब सजधजसे जाते है । रणित झणित गस्वर चौरासी, नेवरी, चठिया पलाण, मौक्तिक माकड़ों, चमचमाती दर्पण खंड जड़ित छेवटी, शालीन, नखराला, गिरबाण, दोलड़ा मो'रा और उस पर राठौड़ी साफा कसे बांकी मूंछों वाला चुस्तवस्त्र परिधीत युवक जब मधुरी चालमें डालने के लिए उष्ट्र ग्रीवाको मो'रेके सहारे वृत्ताकार बनाता तो करहेका सशब्द नृत्य अश्व नृत्योंपर भी पानी फेर देता ।
पड़जानियों और जानियों के वाहनोंकी प्रतिस्पर्धी दौड़ जब ग्राममें मचलती तो ग्राम ललनाओंके कण्ठ भी निनादित हो उठते । अमल अरोगण, प्रशस्तिकरण और स्नेहमिलन राजस्थानी विवाहकी अपनी निधि रहे हैं। हमारे चरितनायकके किशोर हृदय पर इस सुखद वातावरणका बड़ा प्रभाव पडा। बीकानेर लौटकर वे अपने गाँव डांडूसर गये। वहाँ मतीरा तोड़-फोड़कर खाना, ककड़ी छीलना और नमक-मिर्चके साथ उसे सस्वाद निगलना, बाजरीके सिट्टे मोरना खाना और शरद्की चाँदनीमें चाँदी जैसे शान्त शीतल सैकत सरोवरों (धारों में अवगाहन करना-जैसे स्वयंसिद्ध था। स्वतः प्रेरित था और अनिवार्य करणीय था।
एक रात आप गाँव डाँड्सरमें राजस्थानका प्रसिद्ध खाद्यपदार्थ खीचड़ा खा रहे थे । कोई बड़ा कीड़ा उसमें गिर गया और गर्मागर्म खीचड़ेमें गिरकर तद्रूप बन गया। इस जीवहिंसासे आपको बड़ी आत्मग्लानि हई और आपने सदाके लिए रात्रिभोजनका परित्याग कर दिया। यह घटना संवत १९८१के आस-पास की है।
इसी वर्ष हमारे चरितनायक श्री नाहटाजीकी सगाई ग्राम मोलाणिया हाल श्री गंगा शहरके सेठिया श्री मोरसीदासजीकी सुपुत्री चिरसौभाग्यवती श्री पन्नीबाईसे हुई। तब न दहेजका दूषण था और न लड़केके द्वारा लड़की और लड़की के द्वारा लड़केको देखनेका नाटक । उन दिनों घर और वर देख लिये जाते थे और आवश्यक हुआ तो घरका कोई बड़ा बूढ़ा लड़की देख आता। वाग्दानकी विधि सम्पादित की गई। इसी वर्ष आप अपने व्यापारको समझने और उसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रथम बार परदेश गये।
परदेशमें हमारे चरित्र-नायकके लणकरणसर वास्तव्य बड़े मामाजी श्री मंगलचन्दजी और छोटे मामाजी श्री भागचन्दजी रहते थे । बड़ी गद्दीमें मंगलचन्दजी और छोटीमें छोटे मामाजी काम करते थे। श्री भागचन्दजी श्री नाहटाजीको खाता-रोकड़, लिखना व माल बेचना-खरीदना आदि सिखाते थे । उन्होंने हमारे चरित्र-नायकको ब्याज फैलानेमें पारंगत किया। आपमें कसबढ़की जो वृत्ति उपलक्षित होती है, उसका श्रेय श्री भागचन्दजीको है । आज आप जो अनेक स्थानों पर वस्तू-क्रयमें कस करते हैं, वह देन भी लघुमातुल श्री भागचन्दजीकी है।
कलकत्तामें श्री नाहटाजीके आके बेटे भाई श्री रूपचन्दजी गोलछा काम देखते थे। आपको रोकड़ और खातेका प्रशिक्षण इनसे प्राप्त हआ। रुपये गिनना, तकादा लाना, बाजारसे माल खरीद करना श्री गोलछाजीने ही सिखाया। श्री गोलछाजी प्रसिद्ध दलाल श्री प्रेमचन्दजी नाहटाके साथ हमारे चरित्र-नायकको भेजते और बाजारका रुख समझाते। कलकत्तामें नं० ५/६ आर्मेनियन स्ट्रीटपर नाहटा बंधुओंकी गद्दी थी। वहीं पर बीकानेरके सर्वसुखजी नाहटा सोते थे। वे बड़े हंसोड़ थे। श्री नाहटाजी उनके साथ सामायिकमें मृत्युञ्जयरास, गौतमरास आदि पाठ करते । रिणीके श्री हजारीमलजी बोथरा 'लम्ब लक्कड़ के नामसे विख्यात थे । सर्वसुखजी नाहटासे उनकी खूब पटती थी । लम्बू सेठ बड़े उत्साही और हंसमुख थे, देशसे परदेश पहुँचने वालोंके साथ आप जो मजाक करते थे उसका चित्रण श्री भंवरलालजी नाहटाके शब्दोंमें पठितव्य है।
___"कदेई कोई देस आवतो तो बैशे सिरावणी रो उबो सिगला रे सूयां पछै सफाचट कर देवतां । एक थोथो नारेल राखता जिको कोई देस सं नारेल लावतो जिकोलेर बदलैमें थोथो नारेल घाल देता। अर साबत नारेल नै एक चोट सँ फोड़ताके गोटो सापतो अलग हय जावतो। जोटी भेली कर'र भोली बाँध देवता।
जीवन परिचय : २९
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