Book Title: Muhpatti Charcha
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 12
________________ अल्प, अरु धर्म करणे की रुची घणी, संसार की रुची थोडी । परंतु उस ग्राम में सत गुरुका जोग नही था । मिथ्याती लोक बसे थे । ___ में 'गुरुमुषी अक्षर पडने लगा । सीखों की बांणी पढ्या । 'तिवारे मेरे मन मां वैराग आया । दीक्षा लेणे की माता पासे आज्ञा मागी । माता क़हणी लागी-हे पुत्र साधु का वचन हे तेने तो साधु हो जाणा हे । मेरा तेरे साथ घणा मोह हे । मेरे मरे पछे तुम साधु होजो । तुम तो घर विषे साधु सरिखा हे । तुमाने कोइ ग्रहस्थ का कजीया "गल पाया- नहि इत्यादिक घणा उत्तर हुआ । माताने दीक्षा की आज्ञा दीधी परंतु मेरे कों कह्या - हे पुत्र एह काम मत करजो - "घर छोडी घर मत बांदिजो । देखके त्यागी वैरागी पंडित गुरु धारिजो । पहिलां गुरु देख के पीछे मेरे पासो आज्ञा ले के साधु होजो । फेर में घणे फकीरां को देख्या पंजाब देस में । परंतु मेरे को कोइ गुरु तथा कोइ मत रुचे नही । में कबी तो फकीरां के पास चला जावां तथा उनाके मत देखणे वास्ते चला जावां । कबी घर को चलां आवां । जहां अछा फकीर सुणा तहां चाल्या जावा । परंतु हमारी माता हमारा मोह करी आवणे जावणे वास्ते खरच देवे । कीसी बाते एह दुखी न होवे । इम करतां में चौवीस पचवीस वरस का थया । जब जैनो नाम धराबे थे बावीस टोल्याके “साधुवाकी मेरेको संगत थइ । कर्म जोगे मेंने जाण्या एइ साधु संसारतारक छे । इम जाणी मेनें 'अनुमत्तीयाका परचा तो छोड दीया तां । हां बावीस टोल्या के केतेक साधु मिले । परंतु में 'टोलता २ दिल्ली गया । तीहा मेरे को नागरमल्ल की संगत हुइ । नागरमल्लजी टोल्याका "आमनाय करके पड्या होया था । पंडित हुता । तथा मेनें पिण इस भव मे वीतराग की वाणी सुणी पडी नही थी । १२पनानवंदि पुन विना केवली परुप्या धर्म सुणना अती दुर्लभ छे । पालणा तो पीछे छे । सने सने होवेगा । संपूर्ण तो अंतके पिछले भव मे होवेगा । १ सीखों की भाषा । २ पढा । ३ तब । ४ गले पडी नहीं । ५ इस घर को छोडकर दूसरा घर मत बांधना । अर्थात् पुनः संसार मत बसाना । ६ यह बूटा । ७ संप्रदायके । ८ साधुओ की ९ अन्य मतवालों का परिचय । १० ढूंढता २ । ११ संप्रदाय की परंपरा से पढा हुआ था । १२ पुण्यानुबंधी पुण्य बिना । मोहपत्ती चर्चा * ३

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