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मार्च में श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. का स्वर्गवास हुआ था। और अगस्त में आपश्री का स्वर्गवास हो गया। भाग्य की विडम्बना बड़ी विचित्र है। आपके सिर पर जो हाथ गुरुणीजी का था वह उठ गया। हम आपके हृदय की पीड़ा को समझते है। आप धैर्य धारण कर इस असह्य पीड़ा को सहन करें।
आप मद्रास में है और मैं मेवाड में दूरी बहुत है अधिक लिखने की स्थिति में भी नही हूँ। मैं ऐसे समय में आपके साथ हूँ। अब आप उधर से विहारकर मारवाड की ओर पधारें। अल्प काल में ही दो परम विदुषी महासतियाँजी को क्रूरकाल ने हमसे छीन लिया है। इस समय धैर्य धारण करने के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है। मैं अपनी ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
श्रद्धांजलि
• श्री मेहन्द्र मुनि दिनकर, पाली वयोवृद्धा सरल हृदया महासती श्री कानकुवंरजी म. सा. के देवलोक गमन के समाचार सुनकर हृदय को बहुत ही आघात लगा। जैन समाज एवं जयमल सम्प्रदाय में उनके स्वर्गवास से बडी भारी कमी हो गई हैं। कम समय में ही दो महान सतियाँ देवलोक हो गई। इससे बढ़कर और दुःख क्या हो सकता है! ऐसी दुःखमय घड़ी में हम आपके साथ है। आप धैर्य से काम लें। हम तो दूर हैं। यहाँ शोक सभा का आयोजन किया गया और उसमें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। आप सभी को अपनी गुरुणी के बताये आदर्श मार्ग पर चलते हुए उनके अधूरे कार्यों को पूरा करना है।
अपूरणीय क्षति
• श्री आशीष मुनि शास्त्री, एम.ए.
परिवर्तिनी संसारे मृतः को वा न जायते,
स: जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम परिवर्तनशील इस संसार की प्रत्येक चीज में परिवर्तन आता रहता है। आज का जन्मा हुआ बालक धीरे-धीरे किशोर युवा एवं वृद्ध अवस्था को प्राप्त होता है सुबह का खिला हुआ फूल शाम तक मुा जाता है। आज की बनी हुई सुन्दर से सुन्दर मनोभिराम चीज भी समय आने पर जीर्ण-शीर्ण ही नही होती है, बल्कि उसका अस्तित्व भी मिट जाता हैं। कहा भी है समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाये किसी ने मिटाये हम शास्त्रों में पढ़ते है एवं गुरुजनों से सुनते है कि अयोध्या नगरी का वैभव किसी समय अपने चरम उत्कर्ष पर था। जिसे देवराज की आज्ञा से देवों ने बसाया था। जहाँ पर ऋषभ प्रभु ने आसि मसि, कृषि आदि की सम्पूर्ण कलाओं का ज्ञान देकर आज की सभ्यता का श्रीगणेश
मर
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