Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
ब्रह्म रायमल्ल ने कया का प्रारम्भ चौबीस तीर्थंकरों की वन्दना से किया है। उसके पश्चात् सरस्वती का स्तवन दिया गया है तथा अपनी निम्न शब्दों में लघुता प्रकट की है
समरी सरसति सामरिण पाय, होइ बुधि सम्ह तरणी पसाइ । हौं मूरिख प्रति अपाड प्रयाण, पंडित जन सोहया स विहाण ।।१५।। प्रक्षर पद नवि पाऊ मेद, लहो न अर्थ होइ बहु खेव ।। लधुं वीर्घ जाणु नहीं वर्ण, करिया कहाँ कथा प्रावणं ।।१६।।
इसके पश्चात् प्राचार्य कुन्दकुन्द का नमन करके कथा को प्रारम्भ किया गया है। सुमेरू के दक्षिण भाग की ओर विधाधरों की बस्ती ची । चारों प्रोर सघन हरियाली थी वनों में चारों ओर वृक्ष लगे हुये थे । सुपारी भी कमरस था तथा निंबु एवं आम के सघन वृक्ष, लोंग, अखरोट एवं जायफल में लदे हुये वृक्ष थे। कुंजा, मरवा एवं रायचंपा की बेलियां जुही, पाइल, बोलनी, चमेली, एवं मूचकंद के लता एवं वृक्ष थे।
घोल सुपारी कमर घणो, नियमां पायांफण सचिचिरिण । मिरि बिदाम लौंग अखरोट, बहत जाइफल फले समाट ।।।। कुजो मरवी सादी जाइ, देसि सिंहाली चंपो राइ । अहो पाउल पालना , ला कनयर मुभव II
आदितपुर बहुत सुन्दर नगर था जिसके राजा का नाम प्रहलाद था । उसके एक पुत्र था नाम था पवनकुमार | भादितपुर नगर सब तरह से सम्पन्न था। मंदिर धे, बाजार थे, बड़े बड़े व्यापारी थे । थावक गण धन धान्य से पूर्ण थे । एक दूसरे में ईा नहीं थी । कहीं मल्लयुद्ध होता था तो कहीं अखाडा चलता था । घर घर विवाह होते रहते थे । नगर में मुनियों का पाहार होता रहता था ।
इसी भरत क्षेत्र में मेरू के पूर्व दिशा की ओर वसन्त नगर था उसका राजा महेन्द्र था तथा रानी का नाम इन्द्रदनि था । अंजना उसकी पुत्रो का नाम था । वह बहुत रूपवती थी। अंजना जब पूर्ण युवती हो गई तो राजा ने अपने चारों मंत्रियों से बुलाकर अंजना के लिये उचित वर की तलाश करने को कहा । प्रथम मन्त्री ने रावण से विवाह करने का प्रस्ताव किया। दूसरे मन्त्री ने रावण के पुत्र इन्द्रजीत एवं मेघनाद में से किसी एक के साथ विवाह करने के लिये कहा । तीसरे मन्त्री ने हिरणाभ के पुत्र अरिंद कुमार से करने की सलाह दी । चौथे मन्त्री ने पवनंजय के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। सभी सभासदों को अन्तिम प्रस्ताव अच्छा लगा।
कुछ दिनों पश्चात् प्रष्टान्हिका पर्व मा गया और सब विद्याधर अष्टान्हिका पूजा के निमित्त नन्दीश्वर द्वीप चले गये । वहां भक्तिपूर्वक पूजा होने लगी। वहीं