Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भविष्णमः गाई
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भविष्यदस की वीरता से राजा प्रभावित हो गया और अपनी कन्या का भी उससे विवाह कर दिया।
जैन धर्म निहो कर, चाल मारग न्याय ।
सस सेवा सुरपति कर अंति सुर्ग माह ।। भविष्यदत्त को राज्य मुख भोगते हुये कितने ही वषं व्यतीत हो गये। कुछ समय पश्चात् माता के कहने से भविष्यदत्त ने पचमी व्रत ले लिया । भविष्यानुरूपा को दोहला हुआ और उसने तिलकाद्वीप जाकर चन्द्रप्रभु चस्मालय के दर्शनार्थ जाने की इच्छा व्यक्त की । उसी समय मनोवेग नाम का विद्याधर वहां आ गया और वह भविष्यदत्त को विमान में बैठाकर तिलकाद्वीप पहुंचा दिया । उन्होंने चारण मुनि के दर्शन कर श्रावक धर्म को भलीभांति सुना तथा चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र की भक्तिपूर्वक पूजा की। मुनिश्री ने स्वर्ग नरक का भी वर्णन किया । भविष्यानुरूपा के चार पुत्र सुप्रभ, स्वर्णप्रभ, सोमप्रभ, रूपप्रभ तथा दो पुत्री उत्पन्न हुई।
बहत समय पश्चात् हस्तिनापुर में विमल बुद्धि नामक मूनि का आगमन हुमा । भविष्यदत्त ने सपरिवार उनकी वन्दना की। मुनि ने विस्तारपूर्वक तत्वों का विवेचन किया। अन्त में भविष्यदत्त ससार से विरक्त होकर सपरिवार मुनि से संयम प्रत धारण कर लिया तथा अपने पुत्र को राजगद्दी सौंप कर मुनि दीक्षा धारण करली पौर पहिले स्वर्ग में तथा फिर चौथे भव में निर्वाण प्राप्त किया।
भविष्यदत्त चौपई कश्चि की बड़ी रचनामी में से है। यद्यपि काश्य में प्रमुख रूप में कथा का ही निर्वाह हुआ है लेकिन कवि ने बीच बीच में घटनाओं का विस्तृत वर्णन करके उन्हें काव्यात्मक रूप देने का प्रयास किया है। काव्य की भाषा एकदम सरल और बोलचाल की है । उसे हम राजस्थानी के अधिक निकट पाते हैं ।
कवि ने भविष्यदत्त चौपई का निर्माण दूहाड प्रदेश के प्राचीन नगर सांगानेर में किया था । रचना समाप्ति की निश्चित तिथि संवत् १६३३ कातिक सुदी चतुदर्शी थी। सांगानेर आमेर के शासक राजा भगवंतदास के प्रधीन था तथा वे अपने परिवार के साथ सुखचैन से राज्य करते थे ।'
१ देस हूढाहड़ शोभा घणी, पूजै त हा अली मन तणी । निर्मल तल नदी बहुफिरि, मुवस बस बहु सांगानेरी ।।१४।। चई दिसि वण्या भला बाजार, भरे पाटोला मोती हार । भवन उत्तंग जिणेसुर तणा, सोमै चंदवा तोरण घणा ।