Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि की काव्य रचना के प्रमुख नगर कुछ किया है उमसे ज्ञात होता है कि उस समय नगर में सभी जातियों रहती थी सथा वह वन, उपवन, मन्दिर एवं मकानों की दृष्टि से नगर स्वर्ग समान मालूम होता श । कवि ने धौलपुर को घोलहरनग्र लिखा है।' जनों को घनी बस्ती थी और उनकी रुचि पूजा पाठ प्रादि में रहती थी। शाकम्भरी
वर्तमान सांभर का नाम ही शाकम्भरी रहा है। शाकम्भरी का उल्लेख संस्कृत, प्राकृत एवं अपनश के विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है। शाकम्भरी देवी के पीठ के रूप में वर्तमान सांभर की प्राचीनता महाभारत काल तक तो चली ही जाती है : महाभारत (वनपर्व) देवी भागवती 7128, शिवपुराण (उमासंहिता) मार्कण्डेयपुराण
और मूर्ति रहस्म प्रादि पौराणिक अन्यों में शाकम्भरी को अवतार कायों में शतवार्षिकी अनावृष्ठि, चिन्ताकुन ऋषियों पर देवी का अनुग्रह, जलवृष्टि, शाकादि प्रसाद दान द्वारा धरणी के भरण पोषण यादि की कथाएं उल्लेखनीय हैं। वैष्णाव पुराणों में शाकम्भरी देवी के तीनों रूपों में शताक्षि, शाकम्भरी और दुर्गा का विवेचन मिलता है । देश में शाकम्भरी के सीन साधना पीर है । पहला सहारनपुर में दूसरा सीकर के पास एवं तीसरा सांभर में स्थित है। यों तो सांभर को शाकम्भरी का प्रसिद्ध साधना पीठ होने का गौरव प्राप्त है लेकिन इसमें स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थली देवदानी (देवयानी) के आधार पर भी इस नगर की परम्परा महाभारत काल तक चली जाती है।
जैन धर्म और जैन संस्कृति की दृष्टि में शाकम्भरी प्रारम्भ से ही महत्त्वपूर्ण नगर रहा । मारवाड़ प्रदेश का प्रवेश द्वार होने के कारण भी इस नगर बा अत्यधिक महत्त्व रहा। देहली एवं प्रागरा से आने वाले जनाचार्म शाकम्भरी में होकर ही
१. अहो घोलहर नग्र वन देहुरा थान,
देवपुर सोमं जी सर्व समान पोणि छत्तीस लीला कर
अहो करें पूजा नित जब परहंत । २. स्वादनि फलमूलानि भक्षणार्थ ददौ शिवा ।
शाकम्भरीति नामापि तद्धिनात् समभुम्लप । देवो भागवती ७।२८ भालियं स पुरवं तेषां, शाकेन फिल भारत । ततः शाकम्भरीत्येव नामा यस्याः प्रतिष्ठितम् । महाभारत बनपर्व