Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 341
________________ ३३८ कविवर त्रिभुवनकीर्त्ति क्षुधा पीड्यु एक नीसरयु रे कोट बाहिर चकलास | मतां देखीउ रे महा मुयंगम वासरे भवीयण धर्म करूं एक सार ॥१७४८२ चल चपल जिह, वा छिरे, मेल्हतु विष तणी झाल । कुंडल वाली जब रह्य, उ रे, जाणउ ग्रहज काल रे || १८ || ४८३ || देखी काकडउ सिविरे, ए बागिल जीव केम । चिती ते वालीउरे, नकुल तिणि छिद्र एमरे ।। १६ ।। ४६४ ।। पूठि की महि चालीउरे, ते गड छिद्रज माहि । चकलास पाम्यु कीउरे, नकुल तणि गव गेहरे ||२०|| ४६५|| नकुलि हि तब मारीत रे, भक्ष करू तनि ठाम । चकलापांम्बु कीउरे, सर्प पाम्पु दुःख ताम रे ।। २१ । ४८६ ।। स्वाधीन सुख नवि भोगवि रे, ते नर प्रामि दुःख । सर्प तणी पिरि प्रतिघणारे, कोइ न पामि सुख ॥२२॥४६७ ॥ से सरघु स्त्री हूं नही रे, बोलि जंबु कुमार । शीपाल कथा कहुं रुपडी रे, सांभलु तम्हो सहू ना रे ।। २३ ।।४६८ ।। चूहा - जंबुक एक रात्रि वली श्राव्यु नगर मकार । वर्ला व एक देखीउ, मरण पाम्यु एक बार ॥१६४८६ ॥ मंस लोलप सीयालीउ, वलद पंजर मध्य भाग मांस खाई तिहार, नवि लह्य रात्रि विभाग || २ ||४६०६ | • दिनकर ऊग्यु जाणीव, जावानि नहीं लाग 1 पंच सात जोत्रा मिल्या, न लहि जावा माग || ३ | ४६१ ॥ हृदय मांहि इम चितवि, खुद मुझ तणु धायु । रजनी मामुं जु किमि तु राखु, वली काय ॥४४६२

Loading...

Page Navigation
1 ... 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359