Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 346
________________ जम्बूस्वामी रास ३४३ नदी कांठिवि पाषीया धूरत चिति एम । एह मूकी वस लूटीनि चिति जाउ केम ॥११॥५३२॥ सांभलि स्त्री तुझ हूं कहुँ, द्रव्य हुछ वली जेह । मुझ हाचि बापु । उता ५३३|| लोभ पणि वसू पापीउ, घरत पाम्पु सुख । एकाकिनी मूकी तिहां रदन करि घरि दुख ॥१३॥५३४।। एनलि एक सियालिणी मांस घरी मुख एम । रही रही जोड तिहो हषि करसिए केम ।।१४।। ५३५।। मास मूकी पूठि थई मछ गड चल ठाम । मन मांस लेह गउ, रही रही जोइ साम् ॥१५॥३६।। हे नारी तिसुकर निज मारी भरतार । जैसा थि तु नीकली, ते गउ तुझ झार ॥१६॥५३७॥ नारी संबुक प्रति कहि मुझ यु डाह पण तुझ । उभय भ्रष्ट हुई वली कियुप कई वली मुझ ।।१७॥५३८।। वस्तु-तेण अवसर तेण अपसर जंबू कुमार । विद्य च्चर प्रति बोलीउ सामलि मामा मुभ बात । असती जंबुक ते समु काई सु मुझ बात। ए संसार प्रसार छिइ समाणु सहू कोइ । एक कथा कहु.रूपडी सहू सभिलु तम्हो लोइ ॥१॥५३६।। ढाल पाएंवानी जंबु स्वामी बोलीउ प्रार्णधानी सांभल प्रभवा बात तु वणिक एक वाहण चड्यु । द्रव्य लेइ संघाततु ।।मा॥१॥५४०।। विधिध वस्तु लेई करी ।पा। द्वीपांतर गउ तेह तु । वस्तु बेची तिहां प्रापणी ।पा। विविध वस्तु सीषी तेह तु ॥२१॥४१॥

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