Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 353
________________ कविवर त्रिभुबन कीत्ति पाए अणू हाणे चालवु अपरि सूरज ताप । तपती असू तपती सिला किम सहि सुहो बाप बोसि॥४॥६०७|| वरषा काल वरसा तनी किम सहि सुहो धीर । झाझावात बाइ घणा किम रहिम निरपार ||बोलि।।।।६०८ छह आवस्यक दोहिला महाक्त पंच। अठावीस मूल गुण दोहिला दौहिलु तेहनु संघ बोलि।।६।।६०६। जल विण किम रहि माछली सिम तुझ विम पुत्र । मुझ मेहली बीसासीनि कांइ जाउ वन सुत ।।७॥१०॥ परभव दव पर जालीया, किमि दीषी हो भाव । किमि मुनिवर दूहल्या झिवि छोहा हो बाल ।बोलि।।।।६११॥ हाहाकार करि घणु करि बदन अपार । अश्रुपात करि घणु करि विविध विकार । बोलि।।६।१२।। मुरझा वस परणी पडी करी भाणा हो पाय । मी बासी तेहनी सावधान इस तस काय ।।बोलि।।१०१॥६१३॥ पुत्र कहि माता सुणु ए संसार प्रसार । दिया लेवा मुझ देउ, कोई कर अंतराय ॥बोलि।।१।६१४।। दर्शन ज्ञान चरित्र बिना मवि सहोइ मोक्ष । माता मुझ मा वारसु. मां घरसु हो रोष ॥१२॥६१।। हेतु दृष्टांत देह घणा प्रति बोधी मात । सासु सुसुरा बुझवी प्रति बोधी हो तात ||१३||६१६॥ पादेस लेई माय नु चाल्यु, राय संघात । लोक सवे तिहां चालीया, बोलता बहू क्षात बोलि॥१४॥६१७।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359