Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 355
________________ ३५२ कविवर त्रिभुवनकर्कात्ति हरष्षु श्रेणिकराय स्वजन लोक सहू हरषीउ । फेतले लीयां समकित फेतले त तिहां लीयां ॥चेतन।॥६॥६२६॥ पंचसि चोर सहित बिद्युत्प्रभ तिहाँ प्रावीउ । प्रणमी मुनिवर पाय दिक्षा लेईनि भाषीउ ।।चेतन।।७।।६३011 मुकी परिग्रह सर्व चारित्र भार तिहां धरी । हुज मुनिबर राय सर्व संग तिहां परहरी ।।८।।६३१॥ संसार जाणी असार, ग्रहदास मुनिवर हूउ । नीधी दीक्षा सार, ध्यान धरि मुनिवर सहू ।।चेतन॥६॥६३२॥ जिनमती जे वली माय. शिक्षा लीधी निर्मली। पदमश्री मादि नारि दीक्षा लीघी मनरली वेितन॥१०॥६३३।। सुप्रभा प्रणमीय पाय, सास्त्र भणी तिहां रही। तप जप करि अपार, स्त्री लिंग हणवा ते सही तिन॥१५॥६३४॥ श्रेणिक घरी सहू कोय सोधर्मा मूनी नमी चासोमा । पाव्या हो नगर मझार, धर्म ध्यानि करी पासी ॥चेतन।।१२॥६३५॥ एक दिवस जंबुस्वाम नगर प्रतिवली मावीउ । ईर्यापथ सोधत, नीची दृष्टि करी भावी ॥चेतन।।१३।६३।।६ मगर तणी जे नारि, भवन लोकन करि घणु । पड़घाई मुनिराय, भाव सहित सु प्रति घणउ ॥चेतन।।१४।।६३७॥ बोलि हो नगरी नारि, च्यार नार छोडी करी। परहरी मायनि बाप, भव धणू मनसु धरी ॥चेतन।।१५।।६३८।।

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