Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 354
________________ जम्बूस्वामी रास दहा-बाजित बांगा प्रति घणा, बंदी जन जयकार । हरष हुड हीमपि पपउ, को नवि लाकि पारि १९|| तिहाँ थी बसी याबीउ मंदन वनह मझार । सोधम्म स्वामी प्रणमीति विठव जंबू कुमार ॥२॥१६॥ नगर लोक सह प्रावीया, पाव्यु श्रेणिकराय । प्रण प्रदक्षणा देहनि, विठज प्रणमी पाय ॥३॥२०॥ अबसर पामीनि चली, बोलि जकूमार । स्वामी मुझ दिक्षा देऊं, ऊतार भवपार ॥४॥६२१।। इस कहीनी तिहां रहं, मुनिवर भावि भाग । दिक्षा लेई तिहां निर्मली, छोडि परिग्रह माग ॥५११६२२॥ हाल बाजारीनीर-राग गुडो मुकि परिग्रह वाह्य, प्राम्येतर मूको वसी । घेतन हीयसारे ॥१॥६२३।। मुकट कुंडल बाजूबंष हार ऊतारि मन रली ।।चेतन॥१॥६२४॥ गरीए तणां जे वस्त्र सार शृंगार कि सही । स्वकीय हस्ति करि लोच, पंच मुष्टी तिहाँ रही । चेतन।।२३।६२५।। पंच महावरतन मार, पंच सुमति मण गुप्त सु। पारित्र तेर प्रकार, तेह परि मन सुध सु। चेतना।३।।६२६।। सह प्रावश्यक सार मूल गुण घरि वली । इंद्रीय पंच सहित, विषयनि वारि ते वली ।।चेतन।।४।२७।। गुरनु लही अपदेश, लीधी दिसा तिहा सही। परिसह सहिरे बावीस, ध्यान धरि वन रही ॥५॥२८॥

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