Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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जम्बूस्वामी रास
३४६ .
वहा-तिणी अवसर उदयाचलि. उदय पाम्यु तव सूर ।
राम रहित कुमरनि, जोवा भाब्यु सूर ||११५६७॥
सिय्या कूमर मूकी करि, करि सामायक सार । केतला पडि कमणु करि, केवि पि नवकार 1.२||५६८||
प्राधिक रागि वामीउ, इहां रहिबा नहीं लाग । बन जाई दिक्षा लेणं, कर हूं जीवनु माग ॥३५॥१६॥
इसुय जाणी घिर थकी, माव्यु श्रेणिक पास । हरष हूउ हीढि घणउं, प्राम्पुमन उल्लास ॥४॥६.०॥
वाजित बांगा प्रति घणो, को मवि लाभि पार । मुकट कुंडल वाजूब हरसा पहिराध्या कुमार ॥५॥१.१॥
सिबका प्राणी रूयडी, विसास्यु तिणी वार। नगर लोक राय सहित, सुचाल्यु जम्बूकुमार ॥६॥६०२॥
कुमर चाल्यु तर जाणीज प्राची जिन मसी माम | दुखि रुदन करि घणु, बली वली लागि पाय ||७||६०३।।
ढाल बलभवनी-राग बेलाजल
बिलवि ते पुत्रहू एकली तुझ विण रहि उ न जाय। सुरू बिण उदस एस हइ, सुप कहि वली माय । बोलि माय पुत्र पाछाचलु, ए दिक्षानु नहि काल । तु सुंदर नान्ह अछि दीसतु सफोमाल ।। बोलि ॥११६७४।।
पुत्र प्रागिल माता रही करि रुदन अपार । बार बार दुख धरि करि मोह प्रपार |बोलि ।।२।।६०५।।
सीयालिसी वाजसि बन रहिणतन जाइ । बत तादि तिहां खा सहि किम रहिमि हो काय ॥बोलि।। ।।६०६।।
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