Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 356
________________ जम्बूस्वामी रास लोष हो संयम भार एह सरीखउ को नहीं एहवी बोलइ सहू क्षाति, नगर लोक नारी रही । वेतन।। १६ ।। ६३६ ॥ जंबू हो मुनिवर राय, जिनदास घिर श्रावीउ | पडघाई मुनिराई, साग तिथि अवसर जिनदास, पुण्य करि नव पिरा । आहार अनंतर नाम, रत्न दृष्टि हुई घरि ॥ तन ।। १८ ।। ६४१ ।। धर्म वृद्धि कहीं तेण तप स्थानिक मुनि भावी । मुगति तणि चली हेतु. अधिक तप करी भावीउ || १६३२६४२ ।। ध्यानि परि मुनिराय, विपुलाचल पर्वत रही। शुक्ल हमान खडी स्वाम, मोह समावि तहां सही ||२०||६४३ ।। सोधर्म मुनि तिणी ठाम, पाठ कर्म हणी थया । प्रथम पक्ष माघ मास, सप्तमी दिन मुगति गया ।। २१ ।। ६४४ ।। दहा - तिणि दिन जंतू केवली. चडीउ उपसम श्रेणी । कर्म सर्व समाच. चडीउ क्षपक श्रेणि ॥ | १ ||६४५ ।। तिसठ प्रकृति तिहां क्षप करो, बात कर्म करी हानि । गुणस्थानिक लही तेरमु ं ऊपनु केवल शान ॥ २३६४६ ॥ इंद्रादिक तिहाँ प्रावीया, प्राच्या चतुमिकाय | गंध कुटी रवी भली. प्रणमी केवलि पाय ॥३.१६४७।। धर्म प्रकास्यं केवली, सागार प्रणगार | वार व्रत प्रकासीयां क्रिया ते त्रेपन सार | ४|| ६४८ || माठ मूलगुण कहा, आवक नो छह कर्म । छ भावस्य मलगुण कहवु ते दश विध धर्म ।।५।। ६४६ ॥ ३५३

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