Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर त्रिभुवनकोति
जाग्यु रे जे तलि कांइ न देखि, किहां सर किहां जल । जिहवा रे स्वादन करि प्राणी काँइ नवि लाहि बल । जिह्वा रे स्वादन बरत तेहनी तृषा तेहनी नवि गई। तृषा पीडउ मरण पांम्यु दुख मोगवि तिणि लई ।।३।।५२१।।
दहा--विश्य सचर इम बोलीउ सांमलि जंबू कुमार ।
वणिक एफ तस कामहनी पौवन प्रामी सार ।।१।।२२।।
निज द्रव्य लेई नीकली मिलीउ धूरत एक । स्नेह यांधी तेह सुबली सुख विलसि अनेक ।।२।।५२३।
तिहाँ रहती वली अन्य सूलन्द हुध तिणीधार । विहू सरसा सुख भोगवि को न वि जाणी पार |1||५२४॥
जरि वृत्तांतह जाणिउ कपट धरी मन माहि । पूर्व वृतांत तलवर कही मन सघरी मति दाह ।।४।। ५२५॥
माजि रात्रि तम्हो भाव जो, लाभ हसि मुझ गेह । इंसु कहीय धिर पाबीउ, समन सूतु वली तेह ॥५॥।॥२६॥
कामाकुल ते कामिनी, सूती सिज्या जई सार । विहां घुरति सह देखीउ, स्त्रीय चरित तिणि वार ।।६। ५२७॥
रानि संकेति माबीउ, नगर तणु रक्षपाल | नगर लोक जागवतु, पाय तिहां फोटपाल ॥७॥५२८ ।।
जार सिध्या थी ऊठी करी प्रावी घुरत पास । तल रक्षक बली प्रावीउ . धूरत तणि प्रावास
||५२९।।
प्रावी घूरत बोलीवीउ. कुण अछि तुझ गेह । हूँ नवि जाणउ बोलीज कोई ग्रहउ पली तेह ।।।५३.।
सुष्ट मुष्ट करी बांधील जार मा तिमि ठाम । राअभय या नीफल्य, धूरत स्त्री सई ताम ||१०.५११॥
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