Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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३४.
कविवर त्रिभुवनकात
कुण ठाम थी रे पापा मामा तम्हे का. भोलि प्रभवु रे सांभाल मोणेजहं कह । पण ममी रे मापार कारणि हुं पलो, तुझ मागिलहरे कह सामनु मन ली ।।५.४
विभिन्न देशों के माम
भम रतीय भभीउ उत्तर दक्षण पूरव पश्चिम ए दशि ए । करणार सिंघल दीप केरल देश चीणक ए दिशि । कुंतल देस विदर्भ जन पद सह्म पर्वत प्रामीउ । नवंदा नारि विष्म पर्वत तिह मास्यु मामीउ ।।१॥५०॥
भस्यच पाटण माहीर कूकण देग कछि प्रावीउ । सौराष्ट्र देसि किष्कंघ नगरी, गिरनारि पवंत भावीउ ।।२।।५०६।।
नेम निर्वाण जिहां पाम्या राजीमतीइ तप ग्रही 1 तिहां प्रावी जिणवर पाय प्रणमी, मानव भव सफल ग्रही ।।३।१५०७॥
पदाचल मेवाड देस लाड मरहठ पामोउ । चित्रकोट गुजराति देस मालव देशि कामीउ ॥४॥५०८॥
कासमौर फरहाट देस विराट ९ भम्यु अति घणज । परिभ्रमण कोषां द्रव्य कारणि, पार न पाम्यु तेह तणु ।।५।।५०६।।
पालि
बोलि प्रभषु रे सांभसि जंबू तुझ कहुं इणि संसार रे सुव दुर्लभ जीव सहू । सुख प्रामो रे भोगवि जे पुरख नही, ते प्रामी रे दुख सहि इहां रही ॥१॥५१०।।
तप लेई रे परलोकि सुख लहि ते पुरख रे काइ न जाणि सु कहि । जीव पारषि रे सुख दुख कुण भोगवि, जीव पापि रे पुण्य पाप कुणसभवि ॥२॥५११॥
देह माहि रे पंच मूते जीव हवउ, पंच भूते रे गई जीव तिहां चबा । दम जाणि रे पुण्य पाप को नवि लहि, इसु जाणि रे संसार सुख मोक्ष कहि । ३१५१२।।