Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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जम्बूस्वामी रास
एक पुरुष तिहा आवीउ, लोघां करणनि पूछ ।
दत पाठि बीजि लोमा. वसीकरण तिथि अछि ||५|| ४९३ ॥
जीवत या परहरी, मारयु ते शीमाल |
स्वान वायस भक्षण कर्यो, तब पाम्यु वली काल || ६ || ४६४ ||
विषयासक्त जे नर हुइ ते सहि दुख अपार ।
नरक तिथंच माहि रलि, कहां नवि लहि सुख सार ||७||४६५।।
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ढाल थूल भद्रनी- राग बेशाख
एक अवसर रे विद्युच्चर श्राभ्यु वली, काम लता रे घिर यो रात्रि मनरलो । पुर भमतुरे श्राब्यु जबू परि भण, जहां सुतुरे नारी सुकुमार सुणी ॥१॥ ४६६ ॥
धन देखी रे मनमाहि चितिं रही, घन लेवु रे एह तणु चिति सही । सिहां सांभली रे कथा तिनी प्रति वणी, विस्मद प्राभ्यु रे चोर मनसुते सुणी | २|४६७
तिणि श्रवसर रे माय बाबी कुमर क्षणी, संवेग वासु रे तप लेई जाइ वन भणो । इसु जाई रे माता तिहां रही, देशप्रभवु रे माताइ तिहां सही | ३|४६८
पूछिउ कुण रे चोर छंउ माता हू वली, प्राथ्यु चोरी रे करवा प्रभबू कही रली । धन लेउ रे नगर तथा उमि प्रति घण्ड, तुझ मिंदर रे धन लेवा आध्यु मुणु | ४ ४६६ ।।
बोलि जिनमती रे जे जोड़ लेउ तम्हो, विग्र चित रे कांइ ग्रनु माता लम्हो । युक्त पुत्र रे एक छि भाई तम्हो, सुणु दिक्षा ले वारे ऊपर भाव प्रति घणु । ५५००
इणि कारण रे दिन चित्त धणी अछ, तिणि कारण से बार बार रे जो अ बोलि प्रभवु रे विद्या मुझ कति घणी मोहस्तंभन मेलापक भंजन वणी | ६| ५०१ ।
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दिधि दर्शन रे सुप्त प्रबोधन यंजन, केम रूटा रे केम मनावोई भंजन ।
मुझ विद्या रे जु मोह पाउ एवली माय, श्रावीरे तु ह्नि इस सांभली | ७|५०२ |
पुत्र पूछि रे कुण कारण श्रायां इहां, तुम मांभुरे दिवस घणे प्रायुङ हो । fter प्रभवि रे वेस वणिकनु प्रति भलु, प्राथ्यु मंदिर रे माहि बिठउ एकलु ६५०३