Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 340
________________ जम्बूस्वामी रास इसीय चिता माहि पड्यउरे, गज प्राव्यु तिणि ठाम । आवीय बट हलावीउरे, मधउ पड्यु मुखह ताम रे ॥६।।४७१॥ मक्षिका झडी प्रति घणी रे, प्रावी लागी तास देह । दुख देई ते मालपणा , पुण साह र हरे ।। ७२।। तिणि अवसर एक खगपतीरे, प्राव्य तेणि ठाम ।। कष्ट पड्यु नर देखीउ रे, चोलि विद्याधर ताम रे ।।८।३४७३।। सांभलि नर इहां थकी रे, काळु तुझनि हेव । परवम दुख काई भोगवी रे, इसुय कहि तेणि खेवरे ॥भवी॥६॥४७॥ मधु विद लोभि लोलिउरे, वांछि बीजी वार । तां लगि रह तम्हे खगपति रे, इसुय कहि निरधार रे ॥१०॥४७१।। पचन सुणी खग बोलीउरे, सांभलि मूड गमार । मधु बिंदु सुखकरी लेसविरे, दुख न देखि अपार रे । ११।।४७६।। बिंदु बीजु मुख नवि पडि रे, तुरषा तुर वली तेह । दुख घणा पामीउ रे, खग गज भापणि गेह ।।१२।१४७७।। बडवाई कापी मुख किरे पडीड कूप मझार । पहतु गिरि से गस्यु रे, दुख सह्या अपार रे ।।१३।१४७८ ।। लबलेम सुख कारणि रे, दुख न जाणि गमार । एणि संसार नहू पहउं रे, नारि सुण विचार रे ।।१४।।४७६।। ऊपनी एस बोली रे सांभलि कत मुझ बात । एक कथा मह रूयडी रे, सप्पं तणी विक्षात रे ॥१५॥४ ॥ एक दिवस मेघ मादीउरे गाज वीज करी भार । सात दिवस वृष्टि करी रे, थोडी हुई पछि पार रे ॥१६।।४८१।।

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