Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 338
________________ जम्बूस्वामी रास कामातुर पौड्यु सही जे, जणि वानरी पुत्र । तेहनि मारि ते वली, जीवहलारे अजाणति रह्य, एक सृत ॥२६॥४५१॥ ते कपि यौवन प्रामीउ, अननी सुकरि संग । वृद्ध वानर तिणे देखीउ, जीवडलारे जुघ करतां प्राम्यु भंग १२७।।४५२।। ते पुष्टि वानर थर, नाग वानर वृष । गहन वन माहि जाई रह्म , जीवडलारे नासरू तेह अर्बघ ॥२८॥४५३!! क्षुधा तृषा पोड्यु वली सरोवर पाव्यु तेह् । पंक माहि रकतु वली, जीवडलारे प्रामीउ मरणज तेह ।।२६।४५४।। विषायतुर जे नर हइ, कपि मरि यामि मृत्यु । विषय कई म माहि पाउ, जीवडलारे हूं नहीं क्रएसी कात ।।३०।।४५५॥ विनयथी बॉलिइस सांभलि तु मुझ कंत । संखनाम दारिट्री एक, जीवडलारे दरिद्र करि रे एकांत ॥३१॥४५६ उदर प्रांटउ देई घणउ, दिन दिन दमकाउ एक । एकठउ करी मुइ खेपवि जीवडलारे नवि खाद कांड से रंक ॥३२॥४५७।। तिणि वन को एक नर रूप टंका भूद मध्य । घातीनि यात्रा गड़, जौवडलारे दरिद्री लही पाम्यु सिषि ॥३३॥४५८॥ लोभ थकी दरिद्री तिहां पूनपि खेप्यु ताम । पात्रा करी पूरब नर, जीवडलारे कादि लेउ गउ ताम ||३४||४५६।। स्त्रीनु वचन लेई करी, खणवा लागउ दाम । पुनरपि कुभ सोनी भर यु, जीवडलारे प्रामीउ तेणि ठाम ||३५॥४६॥ लोभ थको तिहां सांजीज, प्राभ्यु हरषज तेह । धन संचित पूरव धन, जीवडलारे बली भोग एह ।।३६।।४६१।।

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