Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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जम्बूस्वामी रास
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एह ऊपरि कथा कहुं सोभलि तु कंत सार । घनदत्त एकहालिक, जीवड लारे परणीज एकज नारि ||४|४२६||
ते नारी एक सुत हउ मरणज पामी नारि । वृद्ध पणि बीजी वरी, जीवड़लारे कामा कुल तेणी वार ॥५॥४३०।।
एक दिवस सूतो विन्यि पल्यंक, रात्रि मझार । पररांग मुखी नारी हुइ जीवडलारे सामलि तु भरतार ॥६॥३१॥
प्रथम पुत्र जे तुझ अछि, ते हनि तुह जमार । तु आपण सुख भोगः: शीतलारे ग मोलिबाग :
३२''
सबल पुत्र तुझ तणु, मुझ पुत्र करि सेब । नु प्रापणा यु किम मिलि, जविडलारे इणि मारि सुख हुइ हेव ।।८।४३३॥
कठिन वचन जब सांभली, बोलि घनदप्त बात । बेस राखि ग्रह उद्धरि, जीवडलारे ते किम मारीय सुत ।।६।।४३४।।
राज रंड बली ऊपजि, पाप हुइ अपार । ए कम कीम कीजीइ, जीवडलारे साभलि नारि विचार ।।१०।।४३५।।
हल आगिल तेहनि घरी, हलनि चडि नेह । इणिमा तंतर मार जे, जीवडलारे काई नहीं हु तुझ गेह ।।११।।४३६।।
समीप यकी पुत्रि सुणी सबली तिहुंनी बात । शाल क्षेत्र अखेडीनि, जीवडलारे बाव सुणी गवली तात ॥१२॥४३७॥
इसे दृष्टांत बुझम्य दृझ्यु ते वली बाप । निस्पल फल मूकी करी, जीवडलारे कुण वंचि संताप ॥१३॥४३८।।
स्वाधीन सुख मूकी करी, स्वरग वाछि जे सार । ते हालि कसम जाणीई, जीवडलारे तिम बाण एह कुमार ||१४||४३६।।
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