Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 335
________________ ३३२ कविवर त्रिभुवनकार्ति पदमनी खर्डानि चक्रमा विरह करंतु तेह | कामी जननि कामिनी, तेह सु' बरतु नेह ॥ २ ॥ ४१६ ॥ घिर बिर दीपक प्रगटीया, नभ उम्बठ तव चद । अधकार सहू नासतु, करतु उद्योत मणि ।।३.१४१६॥ स्वजन प्रादेसि कन्यका, प्रावी ते पल्यंक जंबूकुमार पासि रही, पामी तेह तु अंक ||४|| ४२० ॥ प्रथम मिलन काम कुल से कामिनि, करि ते विविध विकार । प्रंग देखाडि श्रापणां वली वली जंबूकुमार ||५||४२१ गीत गांन गाहे करी, कुमरउ पाद राग । अधिक वैरागि वासीज से किम पामी राम ||६|| ४२२ ।। तिथि अवसर ते चित थिए, संसार असार । सार वस्तु कोइ नहीं, कामिनी काय मकार ॥७॥४२३॥ दुर्गति दाता कामिनी, वाघिण सापि एव | नवद्वारे अश्रु श्रवितो, ते सरसु सर नेहा ४२४॥ जे स्त्री आठ लाघी घीया, ते नर छूटि केम | जउ माया छोडि सही, तु नर छूटि एम ।।६।। ४२५ ॥ ढाल हिंडोलानी- राग मारुणी परस्पर वरीलप पदमस्त्री सरबीयां कहि सांभलि मोरी बात | विर आगि लगॉन, जिसु जीविडलारे अंध आगिल जे सु नृत्यु ||१ |४२६ ॥ तु इम जाणि तप करी, स्वरराज बांउ देवि । तिहां अह्म देवांगना, जीवन लारे इ सुय कहि ते देवि ||२||४२७॥ निस्पल फल मूकी करि जे फल बांखि अन्य । ते मरख कोइ नवि लहि, जीवदलारे चितवि परि मन ||३||४२८ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359