Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर त्रिभुवनकार्ति
पदमनी खर्डानि चक्रमा विरह करंतु तेह | कामी जननि कामिनी, तेह सु' बरतु नेह ॥ २ ॥ ४१६ ॥
घिर बिर दीपक प्रगटीया, नभ उम्बठ तव चद । अधकार सहू नासतु, करतु उद्योत मणि ।।३.१४१६॥
स्वजन प्रादेसि कन्यका, प्रावी ते पल्यंक जंबूकुमार पासि रही, पामी तेह तु अंक ||४|| ४२० ॥ प्रथम मिलन
काम कुल से कामिनि, करि ते विविध विकार । प्रंग देखाडि श्रापणां वली वली जंबूकुमार ||५||४२१
गीत गांन गाहे करी, कुमरउ पाद राग । अधिक वैरागि वासीज से किम पामी राम ||६|| ४२२ ।।
तिथि अवसर ते चित थिए, संसार असार । सार वस्तु कोइ नहीं, कामिनी काय मकार ॥७॥४२३॥
दुर्गति दाता कामिनी, वाघिण सापि एव | नवद्वारे अश्रु श्रवितो, ते सरसु सर नेहा ४२४॥
जे स्त्री आठ लाघी घीया, ते नर छूटि केम | जउ माया छोडि सही, तु नर छूटि एम ।।६।। ४२५ ॥
ढाल हिंडोलानी- राग मारुणी परस्पर वरीलप
पदमस्त्री सरबीयां कहि सांभलि मोरी बात |
विर आगि लगॉन, जिसु जीविडलारे अंध आगिल जे सु नृत्यु ||१ |४२६ ॥
तु इम जाणि तप करी, स्वरराज बांउ देवि ।
तिहां अह्म देवांगना, जीवन लारे इ सुय कहि ते देवि ||२||४२७॥
निस्पल फल मूकी करि जे फल बांखि अन्य ।
ते मरख कोइ नवि लहि, जीवदलारे चितवि परि मन ||३||४२८ ।।
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