Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 337
________________ ३३४ कविवर त्रिभुवनकीति पचन सुणी नारी तणां, बौलि जंबू कुमार । एह समु मुझ काई करू, जोदडलारे सुणु एक कथांतर सार ॥१५॥४४०॥ विंध्याचल मोद गज मरणज प्राम्यू' एक । नदीय नीरि तांण्यउ वली, जीवडसारे काखि छिपाउ सेक ।।१६।४४१॥ हे ऊपरि एक वायस विठन, प्रामिख लोभ । समुद्र माहि जाई पड्यु जीवडलारे पामी प्रति घणउ लोभ ।।१७।।४४२।। करा करां करि घणु जीवानि नही लाग । गज वायस विन्मि पड्या जीवडलारे समुद्र महिय विभाग ।।१८॥४४३॥ मांस लोलप वायम गल पडीड समष्ट प्रभार। तेह सरीखुह नहीं, जीवडलारे नहि पंड्यु एणि संसार ।।१६।।४४४।। कनकधी बोली बली सामलि कत मुझ बात । कैलासगिर पी वानरि, जीघडलारे कीउ बली झपापात ।।२०॥४४५|| शुभ ध्यानि ते वली मउ, विद्याधर हुउ चंग । एकदा मुनिवर बांदीया जीवडलारे तिणि भव कहु मन रंग ।।२१।।४४६॥ एकदा स्त्री सहित सु. प्राव्यु तेणि ठाम । पूरव कथांतर स्त्री कही, जीवडलारे मरण कर एणि ठाम ||२२.४४७।। वचन मुणी भरता तणां, रदन करि बली नारि । स्त्रीय निखेघउ ते १४3, जीवडलारे काप हउ प्रौद्धि अपार ।।२३।।४४८।। स्वीकीय सुख मुवी फरी, वांछि देवज मुख । से नर गजनी परि जीवडलारे प्रामि प्रति घणु दुख ॥२४॥३४४६।। ते नर सरखुहू नहीं, सामलि नारि विचारि । विध्याचल पर्वत भलु, जीवडलारे वानर एक उदार ||२५||४५०।।

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