Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text ________________
कविवर त्रिभुवनकीत्ति
कष्ट करी दिवस प्रति दम फु मूकि एक । धुरत एक देखीउ जीवडलारे गलबी लेइ गउ छेक ।।३७॥४६२।।
एक दिन तिणि जोइ गलु देक्षु सर्व । दुस्ख फरिते प्रतिघणु जीवडलारे पूरव गयु मुझ द्रव्य ॥३८॥४६३।
द्रव्य लह्म विलसि नहीं, लङ नवि भोगवि सुख । लोभ थकी संसनीं परि. जीवडलारे ते नर प्रामि दुख ||३६॥४६४।।
बस्तु-तेण अवतर तेण अवसर जंबू कुमार ।
सणीय वचन बली बोलीउ साभानि नारी मुझ बात । ते सुरसुलु नवि मछु करू नहीं संसारपात । ए कथांतरि तुझ कहूं सांभलि नु वलि नार । सार सौम जिम भोगबु संसृत पामु सार ।।१।।४६५।।
राग रागिरी
सांमलि नांरि एक. कथा रे, लुब्ध दत्त एक सार । एक दिवस व्यापार गरे, चाल्यु प्राध्य वन माहि रे । भवीयण पर्म करू एक सार, घरमि सिव सुख पोमोइरे । घरमि अरथ मंडार रे, प्राणी धर्म करूं' एक सार ।।१।।४६६।।
वणिक पूठि एक गज थउरे, यम रूपी तेह जाण । वणिक नासी ते प्रावीउरे, कूप काठि ते सुजाण ।।२।।४६७।।
कूप तढि एक बट वृक्ष रे, पउवाई माई तेह । मूषक कालु ऊजलु रे, वडवाई कापि बेहरे ।।३।।४६६।।
चितातुर श्रेष्ठी हा रेहूंय करू हवि केम । कष्ट पड्यु दुःस्न भोगबुरे मरण पाम्यु वली ए परे ।।४।४६६५
हेउ तिण जब जोईउरे, माजगिरि देख्यु ताम । चिहुं पासे सर्प देखीयारे, कसाय रूपी एह नाम रे ॥५॥४७०।।
Loading... Page Navigation 1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359