Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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जीवन परिचय एवं मूल्यांकन समुद्र जल नवइ माजइ, तिरसा नपा बिदि किम था विरस । विषया शक्त प्रामह नर नाम, अनुक्रमि काया विनास ।।१५।।
मोटी काया हस्ती तणी, मन दव सथाइ रे वगी। खाई षड्यु सहि बहु दुःख, तेहनि पामइ लवलेस नु सुख ||१|| जिहवा लोलप मछ दुल सही, कांदि बोध्यु लोही बहि । परू पर तडफ उकु मरइ, तेह जोर काया नवि घटइ ।।१७५ ।
बधि के समय में जिन विद्यामों का पठन-पाठन होता था उन्हीं का उसने जीपंधर को शिक्षा के प्रसंग में वर्णन किया है जो निम्न प्रकार है
कुण कुण शास्त्र भणावीमाए, वृत्त नई छंद पुराण । नाटक योतिक बंदक ए, भरह ना तर्क प्रमाण । मंत्र विद्या नर लक्षणाए, राजनीति अमंकार । प्रश्वपरीक्षा गज रत्नए सा भष्यु छि लिप्पि पठार ३१ ।
वेद विद्या भणाबीउए, माव्यु तातनि पास विनोद करइ गुरू शिष्य सु, भोगवइ भोग निवास ।।३२॥
वसंत ऋतु माती है तो चारों ओर फूल खिल जाते हैं भौरें गुजारते हैं तथा शीलत मन्द सुगन्ध हवा चलने लगती है । इसी वर्णन को कवि के शब्दों में देखिये.
सखी एकदा मास बसत, प्राध्यु मननी प्रति रलीए । मजरी आंजे रसाल, केसूयो राती कलीए ।।१।। सखी केतकी परिमल सार, मोगरा फेला तिहां अति धणीए । सखी दडिम मंडप दास, रंभास्तंभ राङ्गण घगीए ।।२।।
सखी कमल कमल प्रपसंग, प्रास्वादन मधुकर करइए। मखी कोकिला सुस्वर नाद, हंस हंसी शब्द घरइए ||३||
सखी मलयाचल संभूत. शीतल पवन वांद पणाए । . सुख करई कामीय काय, स्मृस तु रात्रि दिवस सुणलए ।।४।।