Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ ३२६ कविवर त्रिभुवनकोति कुमरि खग उलखावीयारे, रतनचूलि परी प्रादि । अंणिक राम प्रसंसीमारे, तिहुं प्रति बोली साद | |३५३॥ मृगांक सूता तिहां परफी उरे, श्रेणिक राय सुजाण । सहइ खग चलावीयारे निज निज मंदिर प्राण ॥कुरल।।५।। ३५४॥ तिहां थी थेणिक चालीउरे, प्राब्यु विध्याचल ताम। विलासवतीनि देखाल तुरे, विविध कुगति तिणि आम ।। _ विध्या चल सहू भावीया ।।६।।३५५।। विध्याचल वर्णन हरण रोझ गम सांवरा रे, मृग मयूरनि सेह । कपि महर्षि सिंघ अति भला, देवालतु स्त्रीयनि तेह् ।।कुरल।।७।।३५।। तिहां थी श्रेणिक पालीचरे, साथि जम्बू कुमार । सैन्य सबै साथि प्रछिरे, देस्यु सौधर्माचार्म ॥कुराला||५७।। मगर उद्यान सह मावीयारे, भेटउ सौधर्मा स्वाम । हरष हूउ हैयदि घमारे, प्रणमि मुनिवर पाय ।।६।३५८॥ तप जप ध्यानि मागलु रे, पंचसि शिष्य समेत । ज्ञानवंत मुनिवर अछिरे, तत्व तणन आणि हेतु ||१ नगर।३५६।। सौधर्म मुनिवर वांदीयारे, विठ श्रेणिक राय । धर्म वृघि मुनिवर कही रे, प्रमि जंबू पाय ॥११॥नगर।।३६०।। वस्तु-तिणि अवसर तिणि अवसर जम्बकुमार ।। प्रणमी मुनिवर चरण युग, बिठज ते वली प्रावि भाग । कुमरि मुनिवर पूछीया. स्वकीय भव लही लाग । सांभलिबह तुझ हं कई, स्नेह तणी बली बात । एक चित्त मनधरबी, पूरब भव सहू क्षति ।।१॥३६१।। पूर्व भव वर्णन चुपई-मगध देश देशा माहि मार, वर्तमान पुर उत्तम ठाम । भवदस भववेव वाइब कही, समकित पामी दिक्षा लही ।।१।।३६२।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359